एकादशी व्रत से व्यक्ति निरोगी रहता है, राक्षस, भूत-पिशाच आदि योनि से छुटकारा मिलता है, पापों का नाश होता है, संकटों से मुक्ति मिलती है, सर्वकार्य सिद्ध होते हैं, सौभाग्य प्राप्त होता है, मोक्ष मिलता है, विवाह बाधा समाप्त होती है, धन और समृद्धि आती है, शांति मिलती है, मोह-माया और बंधनों से मुक्ति मिलती है, सिद्धि प्राप्त होती है, दरिद्रता दूर होती है, पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती है, भाग्य जाग्रत होता है, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है, पुत्र प्राप्ति होती है, शत्रुओं का नाश होता है, सभी रोगों का नाश होता है, कीर्ति और प्रसिद्धि प्राप्त होती है। हर कार्य में सफलता मिलती है।
फल – वरुथिनी एकादशी सौभाग्य वर्धक, पापनाशिनी तथा मोक्ष देने वाली है वहीं मोहिनी एकादशी विवाह, सुख-समृद्धि और शांति प्रदान करती है, साथ ही मोह-माया के बंधनों से मुक्त करती है।
फल – अपरा एकादशी व्रत से मनुष्य को अपार खुशियों की प्राप्ति होती है तथा पापों से मुक्ति मिलती है वहीं निर्जला का अर्थ निराहार और निर्जल रहकर व्रत करना होता है। इससे हर प्रकार की मनोरथ सिद्धि होती है।
फल – योगिनी एकादशी पारिवारिक सुख समृद्धि में वृद्धि करती है व पापों से मुक्ति दिलाती हैं वहीं देवशयनी एकादशी का व्रत से सिद्धि प्राप्त होती है। यह व्रत सभी उपद्रवों को शांत कर सुखी बनाता है।
फल – कामिका एकादशी का व्रत सभी पापों से मुक्त कर जीव को कुयोनि को प्राप्त नहीं होने देता है। वहीं पुत्रदा एकादशी पुत्र की चाह रखने वालों को संतान सुख देती है।
फल – अजा एकादशी के व्रत से दरिद्रता दूर हो जाती है, खोया हुआ भाग्य जाग्रत होता है, पुत्र संकट दूर होता है। वहीं परिवर्तिनी एकादशी के व्रत से सभी दु:ख दूर होकर मुक्ति मिलती है।
फल – पितरों को अधोगति से मुक्ति देने वाली इंदिरा एकादशी के व्रत से स्वर्ग की प्राप्ति होती है जबकि पापांकुशा एकादशी सभी पापों से मुक्त कर अपार धन, समृद्धि और सुख देती है।
फल -रमा एकादशी का व्रत करने से जीवन में सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। वहीं देवउठनी या प्रबोधिनी एकादशी का व्रत करने से भाग्य जाग्रत होता है। इस दिन तुलसी पूजा करने से तुलसी जी की भी विशेष कृपा होती है।
फल – उत्पन्ना एकादशी व्रत करने से हजार यज्ञों का फल मिलता है। इससे देवता और पितर तृप्त होते हैं। वहीं मोक्षदा एकादशी जीवन को मोक्ष देने वाली होती है।
फल – सफला एकादशी सफलता दिलाने वाली होती है सफला व्रत रखने से अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। वहीं पुत्र की प्राप्ति के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत करना चाहिए।
फल – षटतिला एकादशी दुर्भाग्य, दरिद्रता तथा अनेक प्रकार के कष्टों को दूर मोक्ष की प्राप्ति होती है। वहीं जया एकादशी व्रत रखने से ब्रह्म हत्या तथा पापों से छुटकारा मिलता है तथा मनुष्य भूत-पिशाच आदि योनियों में नहीं जाता है।
फल – जो व्यक्ति भयंकर परेशानियों से घिरा हो उसे विजया एकादशी का व्रत करना चाहिए। इससे शत्रुओं का भी नाश होता है। वहीं आमलकी एकादशी में आंवले का महत्व है। इसे करने से व्यक्ति सभी तरह के रोगों से मुक्त हो जाता है, साथ ही वह हर कार्य में सफल होता है।
फल -पद्मिनी एकादशी का व्रत मनोकामनाओं को पूर्ण करता है, साथ ही यह पुत्र, कीर्ति और मोक्ष देने वाला है। वहीं परमा एकादशी धन-वैभव देती है तथा पापों का नाश कर उत्तम गति भी प्रदान करती है।
एकादशी व्रत के लिए दशमी के दिन सुबह स्नान करने के बाद भगवान विष्णु की आराधना करना चाहिए तथा रात को पूजा स्थल के समीप सोना चाहिए। अगले दिन उठाकर (एकादशी) प्रात: स्नान के बाद व्पुष्प, धूप आदि से ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्रोच्चारण के साथ भगवान विष्णु की पूजा करना चाहिए। साथ ही पूरे दिन व्रत रखने के बाद रात को भगवान विष्णु की श्रद्धाभाव से आराधना करनी चाहिए। इसके बाद द्वादशी के दिन सुबह उठकर स्नान कर भगवान विष्णु को भोग लगाकर पंडित को भोजन करने के बाद स्वयं अन्न ग्रहण करना चाहिए।
* एकादशी के दिन प्रात: लकड़ी का दातुन न करें, नींबू, जामुन या आम के पत्ते लेकर चबा लें, वृक्ष से पत्ता तोडऩा भी वर्जित माना जाता है। अत: स्वयं गिरा हुआ पत्ता लेकर सेवन करें।
* यदि यह संभव न हो तो पानी से बारह बार कुल्ले कर लें। फिर स्नानादि कर मंदिर में जाकर गीता पाठ करें या पुरोहितजी से गीता पाठ का श्रवण करें।
* एकादशी का व्रत-उपवास करने वालों को दशमी के दिन मांस, लहसुन, प्याज, मसूर की दाल आदि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए।
* रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए तथा भोग-विलास से दूर रहना चाहिए।
* एकादशी के दिन संभव हो तो घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए। इस दिन बाल नहीं कटवाना चाहिए।
* इस दिन यथाशक्ति दान करना चाहिए। किंतु स्वयं किसी का दिया हुआ अन्न आदि कदापि ग्रहण न करें।
* एकादशी (ग्यारस) के दिन व्रतधारी व्यक्ति को गाजर, शलजम, गोभी, पालक, इत्यादि का सेवन नहीं करना चाहिए।
* केला, आम, अंगूर, बादाम, पिस्ता इत्यादि अमृत फलों का सेवन करें।
* प्रत्येक वस्तु प्रभु को भोग लगाकर तथा तुलसीदल छोड़कर ग्रहण करना चाहिए।
* द्वादशी के दिन ब्राह्मणों को मिष्ठान्न, दक्षिणा देना चाहिए।
* क्रोध नहीं करते हुए मधुर वचन बोलना चाहिए।