script365 दिन में एक बार खुलता है नागचंद्रेश्वर का मंदिर, खुलते ही दिखते है 12 नाग-नागिन के जोड़े एक साथ | 365 din ne ek bar khulta hai naag devta ka mandir | Patrika News

365 दिन में एक बार खुलता है नागचंद्रेश्वर का मंदिर, खुलते ही दिखते है 12 नाग-नागिन के जोड़े एक साथ

locationहोशंगाबादPublished: Aug 04, 2019 12:24:50 pm

Submitted by:

poonam soni

– 35 फीट की ऊंचाई पर बना है यह मंदिर
– साल में एक बार ही होता है नागचंदेश्चर भगवान का अभिषेक

nagpanchmi

365 दिन में एक बार खुलता है नागचंद्रेश्वर का मंदिर, खुलते ही दिखते है 12 नाग-नागिन के जोड़े एक साथ

होशंगाबाद। श्रावण शुक्ल पंचमी को नाग पंचमी के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष यह पर्व 5 अगस्त दिन सोमवार को उत्तराफाल्गुनी तदुपरि हस्त नक्षत्र के दुर्लभ योग में पड़ रहा है। इस योग में कालसर्प-योग की शान्ति हेतु पूजन का विशेष महत्व शास्त्रों में वर्णित है। नागों को अपने जटाजूट तथा गले में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को काल का देवता कहा गया है। कल नागपंचमी पर विशेष पूजन अर्चन किया जाएगा।
यहां खुलता है 365 दिन में एक बार मंदिर
मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में उज्जैन व ओमकारेश्वर महाकाल की तर्ज पर बने नागचंदेश्वर मंदिर के पट साल में एक बार ही खोले जाते है। 45 साल पुराने नर्मदे हर आश्रम चौरे गली में गुम्वद पर बना नागचंदेश्चर मंदिर में नाग देवता फन फैलाए भगवान शिव-पार्वती व परिवार की प्रतिमा स्थापित है। साथ ही आसपास 12 नाग नागिन के जोड़ो को भी स्थापित किया गया है। मंदिर के संचालक मीत चौरे ने बताया कि ये मंदिर 2003 उनके पिता प्रकाश चंद्र चौरे ने 45 साल पहले बनवाया था। इन सालों में मंदिर को केवल हमारे परिवार के द्वारा ही खोला जाता है। नागपंचमी के दिन नागचंदेश्वर भगवान का अभिषेक कर श्रृंगार चढ़ाया जाता है। उन्होने बताया कि साल में एक बार पट खुलने पर आसपास के लोग अधिक संख्या में दर्शन करने पहुंचते है। पंडित चेतन चौरे ने बताया कि मुहुर्त के अनुसार अमृत, शुभ, लाभ इन मुहुर्त मेंं सुबह चार बजे खोला जाएगा सफाई कर सुबह सात बजे नागेश्वर श्रवण और चेतन पंडि़त द्वारा भगवान का अभिषेक कर सिंदुर को चोला चढ़ेगा। रात्रि 12 बजे तक पट खुले रहेगें।

ये 12 जोड़े की मूर्तिया स्थापित
नागचंद्रेश्चर मंदिर में १२ नाग-नागिन के जोड़ो की प्रतिमाओं को बनाया गया है। मंदिर खुलते ही इन जोड़ो को स्नान कराकर यहां पूजन अर्चन कर सिंदूर चढ़ाया जाता है। यहां जरत्कारू(अनन्त), जगदुगौरी(वनसुकि), मनसा(शंखपाल), सिद्धयोगिनी(पद्म), बैष्णवी(कम्बल), नागभागिनी(ककौटक), शैवी(अश्वत्तर), नागेश्वरी(धतृराष्ट्र), जरत्कारूप्रिया(शेषनाग), आस्तीकमाती(कालिया), विशहारा(तक्षक), महाज्ञानयुक्ता(पिंगल)।
नांग पंचमी पूजा विधि
नागों को अपने जटाजूट तथा गले में धारण करने के कारण ही भगवान शिव को काल का देवता कहा गया है। इस दिन गृह-द्वार के दोनों तरफ गाय के गोबर से सर्पाकृति बनाकर अथवा सर्प का चित्र लगाकर उन्हें घी, दूध, जल अर्पित करना चाहिए। इसके पश्चात दही, दूर्वा, धूप, दीप एवं नीलकंठी, बेलपत्र और मदार-धतूरा के पुष्प से विधिवत पूजन करें। फिर नागदेव को धान का लावा, गेहूँ और दूध का भोग लगाना चाहिए।
पूजा का महत्व
नाग-पूजन से पद्म-तक्षक जैसे नागगण संतुष्ट होते हैं तथा पूजन कर्ता को सात कुल (वंश) तक नाग-भय नहीं होता। नाग पूजा से सांसारिक दु:खों से मुक्ति तथा विद्या, बुद्धि, बल एवं चातुर्य की प्राप्ति होती है। सर्प-दंश का भय तो समाप्त होता ही है, साथ ही जन्म-कुंडली में स्थित च्च्कालसर्प योगज्ज् की शान्ति भी होती है।
इस वजह से मनाते हैं नाग पंचमी
एक पौराणिक कथा के अनुसार, ऋषि शापित महाराज परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने नाग जाति को समाप्त करने के संकल्प से नाग-यज्ञ किया, जिससे सभी जाति-प्रजाति के नाग भस्म होने लगे; किन्तु अत्यन्त अनुनय-विनय के कारण पद्म एवं तक्षक नामक नाग देवों को ऋषि अगस्त से अभयदान प्राप्त हो गया। अभयदान प्राप्त दोनों नागों से ऋषि ने यह वचन लिया कि श्रावण मास शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को जो भू-लोकवासी नाग का पूजन करेंगे, हे पद्म-तक्षक! तुम्हारे वंश में उत्पन्न कोई भी नाग उन्हें आघात नहीं करेगा। तब से इस पर्व की परम्परा प्रारम्भ हुई, जो वर्तमान तक अनवरत चले आ रहे इस पर्व को नाग पंचमी के नाम से ख्याति मिली।
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