पहाड़ी क्षेत्र में पाषाण उपकरणों की भरमार
आदमगढ़ पहाड़ी क्षेत्र में पाषाण उपकरणों की भरमार है। वर्ष 1960-61 के दौरान हुए उत्खननों में आदमगढ़ से बड़ी मात्रा में पाषाण उपकरण मिले थे। इससे माना जाता है कि यह स्थल आदिमानव द्वारा उपकरणों के निर्माण स्थल के रूप में प्रयुक्त किया गया था।
आदमगढ़ पहाड़ी क्षेत्र में पाषाण उपकरणों की भरमार है। वर्ष 1960-61 के दौरान हुए उत्खननों में आदमगढ़ से बड़ी मात्रा में पाषाण उपकरण मिले थे। इससे माना जाता है कि यह स्थल आदिमानव द्वारा उपकरणों के निर्माण स्थल के रूप में प्रयुक्त किया गया था।
इसलिए खास है आदमगढ़ पहाडि़या
विंध्य पर्वतमाला में विद्यमान आदमगढ़ की पहाड़ी, होशंगाबाद के दक्षिण में 3 किमी की दूरी पर स्थित है।
आदमगढ़ में 20 चट्टानी आश्रय चित्रकारी से सजे हैं जो लगभग 4 किमी क्षेत्र में फैले हुए हैं।
यह शैलचित्र पाषाण काल तथा मध्यपाषाण काल के हैं।
शैलाश्रयों में पशु जैसे वृषभ, गज, अश्व, सिंह, गाय, जिराफ, हिरण आदि योद्धा, मानवकृतियां, नर्तक, वादक तथा गजारोही, अश्वरोही एवं टोटीदार पात्रों का अंकन है।
इन चित्रों को खनिज रंग जैसे हेमेटाइट, चूना, गेरू आदि में प्राकृतिक गोंद, पशु चर्बी के साथ पाषाण पर प्राकृतिक रूप से प्राप्त पेड़ों के कोमल रेशों अथवा जानवरों के बालों से बनी कूची की सहायता से उकेरा गया है।
पहाडि़या में हर साल आते हैं ५० हजार से ज्यादा पर्यटक।
विंध्य पर्वतमाला में विद्यमान आदमगढ़ की पहाड़ी, होशंगाबाद के दक्षिण में 3 किमी की दूरी पर स्थित है।
आदमगढ़ में 20 चट्टानी आश्रय चित्रकारी से सजे हैं जो लगभग 4 किमी क्षेत्र में फैले हुए हैं।
यह शैलचित्र पाषाण काल तथा मध्यपाषाण काल के हैं।
शैलाश्रयों में पशु जैसे वृषभ, गज, अश्व, सिंह, गाय, जिराफ, हिरण आदि योद्धा, मानवकृतियां, नर्तक, वादक तथा गजारोही, अश्वरोही एवं टोटीदार पात्रों का अंकन है।
इन चित्रों को खनिज रंग जैसे हेमेटाइट, चूना, गेरू आदि में प्राकृतिक गोंद, पशु चर्बी के साथ पाषाण पर प्राकृतिक रूप से प्राप्त पेड़ों के कोमल रेशों अथवा जानवरों के बालों से बनी कूची की सहायता से उकेरा गया है।
पहाडि़या में हर साल आते हैं ५० हजार से ज्यादा पर्यटक।