रोजगार नहीं मिलना प्रमुख कारण
यहां से पलायन करने का प्रमुख कारण रोजगार उपलब्ध नहीं हो पाना है। 2001 की जनगणना के समय सारनी में 98 हजार मतदाता थे। 2011 में अब घटकर 84 हजार और 2017 के नगरीय निकाय चुनाव में 64 हजार रह गई। बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। सोमवार को छतरपुर गांव पंचायत के राकेश वरकडे, रामचरण धुर्वे, भग्गा परते, मिलाप आहके समेत दर्जन भर युवा काम की तलाश में तमिलनाडु के लिए निकले।
यहां से पलायन करने का प्रमुख कारण रोजगार उपलब्ध नहीं हो पाना है। 2001 की जनगणना के समय सारनी में 98 हजार मतदाता थे। 2011 में अब घटकर 84 हजार और 2017 के नगरीय निकाय चुनाव में 64 हजार रह गई। बावजूद इसके जनप्रतिनिधियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। सोमवार को छतरपुर गांव पंचायत के राकेश वरकडे, रामचरण धुर्वे, भग्गा परते, मिलाप आहके समेत दर्जन भर युवा काम की तलाश में तमिलनाडु के लिए निकले।
लगातार खत्म हो रहे रोजगार के साधन
सारनी-पाथाखेड़ा का अस्तित्व पॉवर प्लांट और कोयला खदानों से है। पिछले कुछ वर्षों से इनकी संख्या में कमी आई है। जिससे औधौगिक नगरी में रोजगार की समस्या हो रही है। गौरतलब है की 2008 से 2010 के बीच पाथाखेड़ा की (पीके-1, पीके-2 और सतपुड़ा-2) तीन खदानें बंद हो गयी। इसी तरह 60 के दशक में बने पॉवर हाउस एक (62.5 मेगावाट की 5 इकाइयां) 2012 से 2014 के बीच बंद हो गई। फि़लहाल इन इकाइयों का डिसमेंटल का काम चल रहा है। दो बड़े उद्योग बंद होने से रोजगार का संकट गहरा गया। ऊपर से डिसमेंटल के काम के लिए दूसरे राज्यों के मजदूरों को रख लिया गया। इसको लेकर विरोध-प्रदर्शन तो हुआ पर नतीजा कुछ नहीं निकला। यही वजह है की शहर के मजदुर वर्ग का बड़ा तबका पलायन कर गया। बताया जा रहा है की शोभापुर और सारनी खदान 2018 में बंद करने की तैयारी है।
धंधा हुआ मंदा
औद्योगिक नगरी का धंधा दो साल से मंदा है। व्यापारी ग्राहक के इंतजार में बैठे रहते हैं। अब तक दर्जनभर से अधिक व्यापारी दुकान बेचकर निकल पड़े हैं। जिसमें अनामिका बुक स्टोर्स, दीपक जैन, ज्योति इलेक्ट्रॉनिक्स, अरोरा गारमेंट्स समेत अन्य शामिल हैं। वहीं ज्यादातर दुकानदार इन दिनों सेल लगाकर डेड स्टॉक ख़त्म कर रहे हैं।
सारनी-पाथाखेड़ा का अस्तित्व पॉवर प्लांट और कोयला खदानों से है। पिछले कुछ वर्षों से इनकी संख्या में कमी आई है। जिससे औधौगिक नगरी में रोजगार की समस्या हो रही है। गौरतलब है की 2008 से 2010 के बीच पाथाखेड़ा की (पीके-1, पीके-2 और सतपुड़ा-2) तीन खदानें बंद हो गयी। इसी तरह 60 के दशक में बने पॉवर हाउस एक (62.5 मेगावाट की 5 इकाइयां) 2012 से 2014 के बीच बंद हो गई। फि़लहाल इन इकाइयों का डिसमेंटल का काम चल रहा है। दो बड़े उद्योग बंद होने से रोजगार का संकट गहरा गया। ऊपर से डिसमेंटल के काम के लिए दूसरे राज्यों के मजदूरों को रख लिया गया। इसको लेकर विरोध-प्रदर्शन तो हुआ पर नतीजा कुछ नहीं निकला। यही वजह है की शहर के मजदुर वर्ग का बड़ा तबका पलायन कर गया। बताया जा रहा है की शोभापुर और सारनी खदान 2018 में बंद करने की तैयारी है।
धंधा हुआ मंदा
औद्योगिक नगरी का धंधा दो साल से मंदा है। व्यापारी ग्राहक के इंतजार में बैठे रहते हैं। अब तक दर्जनभर से अधिक व्यापारी दुकान बेचकर निकल पड़े हैं। जिसमें अनामिका बुक स्टोर्स, दीपक जैन, ज्योति इलेक्ट्रॉनिक्स, अरोरा गारमेंट्स समेत अन्य शामिल हैं। वहीं ज्यादातर दुकानदार इन दिनों सेल लगाकर डेड स्टॉक ख़त्म कर रहे हैं।
उम्मीदों पर फिरा पानी
2015 -16 में जब 5 इकाइयों के डिसमेंटल का काम शुरू हुआ और मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बजट प्रस्ताव में 660-660 मेगावाट की दो इकाइयों के निर्माण की घोषणा सतपुड़ा के लिए हुई तो नगर के लोगों की उम्मीद जागी। लेकिन अब तक इकाइयों के स्थापना को लेकर कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हुई। पॉवर हाउस सारनी के पीआरओ वीसी टेलर ने बताया की एक बार कंसलटेंट आए थे। सर्वे करके गए हैं। फि़लहाल नए प्लांट को लेकर कोई प्रक्रिया नहीं चल रही।
2015 -16 में जब 5 इकाइयों के डिसमेंटल का काम शुरू हुआ और मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बजट प्रस्ताव में 660-660 मेगावाट की दो इकाइयों के निर्माण की घोषणा सतपुड़ा के लिए हुई तो नगर के लोगों की उम्मीद जागी। लेकिन अब तक इकाइयों के स्थापना को लेकर कोई प्रक्रिया शुरू नहीं हुई। पॉवर हाउस सारनी के पीआरओ वीसी टेलर ने बताया की एक बार कंसलटेंट आए थे। सर्वे करके गए हैं। फि़लहाल नए प्लांट को लेकर कोई प्रक्रिया नहीं चल रही।