मंदिर में 11वीं पीढ़ी के महंत नारायणदास महाराज बताते हैं कि इस मंदिर का निर्माण मुगलकाल के दौरान कराया गया था। इसकी नकक्शी भी उसी दौर की है। मंदिर के आदि संस्थापक और पहले महंत रिधि रामदास महाराज थे।
बताया जाता है यह मूर्तियां अतिप्राचीन हैं। यह मूर्तियां नीम की लकड़ी से बनी हैं। जो काफी प्राचीन हैं। परंपरा के अनुसार जगन्नाथ में यह मूर्तियां 12 साल बाद बदल दी जाती हैं, लेकिन यहां ऐसा नहीं होता है।
प्राचीन जगदीश मंदिर में जेष्ठ पूर्णिमा पर गुरुवार को भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा, भाई बलदाऊ का महास्नान किया गया। परंपरा के अनुसार भगवान इस दिन बीमार हो जाएंगे और 15 दिन दर्शन नहीं होंगे। इस बीच वैद्य शयन कक्ष में आयुर्वेदिक औषधियों से उपचार करेंगे। स्वस्थ होने के बाद भगवान रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण करेंगे।
28 जून को जेष्ठ पूर्णिमा पर भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा, भाई बलदाऊ का महास्नान पंचामृत से किया जाता है। शीत लगने के कारण बीमार हो जाते हैं इसके बाद मूल सिंहासन से हटकर भगवान शयन कक्ष में चले जाएंगे। जहां वैद्य आयुर्वेदिक औषधियों से उनका उपचार करते हैं। इस दौरान भगवान को हल्का भोजन दिया जाता है।