कथा के अनुसार प्रतिवर्ष दीपावली के ठीक बाद भाईदूज पर ढालों के साथ तांत्रिक गांगो माई के स्थान पर पहुंचते हैं। जहां देव का निशान भी लाया जाता है। कहा जाता है कि कि शिवगण भीलट देव तथा गांगो माई दोनों तंत्र विद्या में माहिर थे। एक समय दोनों में शक्ति के प्रदर्शन को लेकर आमना-सामना हो गया। दोनों को लड़ते देख भगवान शिव ने उन्हें समझाया तथा कहा कि दोनों के गुरू स्वयं भगवान शिव हैं अत: वे न झगड़ें। तथा आशीर्वाद दिया कि तंत्र की देवी के रूप में गांगो माई की पूजा कार्तिक अमावस्या पश्चात पडऩे वाली दूज पर विशेष रूप से की जाएगी।
जानकारी अनुसार बांस पर मोर पंखों को सजाकर ढाल बनाई जाती है जिसे तांत्रिक अपने शरीर पर लेकर चलते हैं तथा अंत में गांगो माई के स्थान पर पहुंचकर परिक्रमा करते हैं। वहीं देव का निशान भी बांस पर लोटा बांधकर बनाया जाता है। वहीं गांगो देवी की मूर्ति मिट्टी तथा चमड़े से बनाई जाती है। जिसके हाथ पर मुर्गी का अंडा रखा जाता है तथा माई से भक्तगण पूरे वर्ष भर भूत-प्रेतादि बाहरी बाधाओं तथा शक्तियों से मुक्त रखने का आशीर्वाद मांगते हैं।
मढ़ई मेले की यह परंपरा सोहागपुर क्षेत्र में करीब 150 वर्षों से अधिक पुरानी बताई जाती है। किलापुरा मैदान के पूर्व पलकमति पुल के पास पूर्व अधिवक्ता संघ अध्यक्ष मंगल सिंह रघुवंशी, पार्षदद्वय अजीज खान व धर्मदास बेलवंशी, राकेश चौधरी, सुनील साहू, उमेश रघुवंशी, हिंदू उत्सव समिति से संतोष सराठे व नीलेश सोनी व व्यापारी संघ अध्यक्ष राजेंद्र पालीवाल ने ढाल लाने वालों का अभिनंदन किया। जिसके बाद किलापुरा वार्ड मैदान पर बनाए जाने वाले गांगो माई के स्थान पर भीलट देव का प्रतीक चिन्ह गजा निशान ले जाया गया। गजा लाए जाने के दौरान आदिवासी क्षेत्र की परंपरा का स्वागत करने प्रदेश भाजपा प्रवक्ता राजो मालवीय, नपाध्यक्ष संतोष मालवीय, जिला कांग्रेस अध्यक्ष पुष्पराज पटेल, ब्लॉक कांग्रेस अध्यक्ष दीपक ठाकुर आदि उपस्थित रहे तथा सभी ने पडिय़ारों का माला पहनाकर स्वागत किया। इस दौरान बड़ी संख्या में तांत्रिकगण तथा आम नागरिकों ने मेला स्थान पर पहुंचकर देव तथा माई से आशीर्वाद प्राप्त किया।