scriptमप्र में यहां बंजारों ने की थी बूढ़ी माता की स्थापना… दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं कष्ट | boodhi mata mandir itarsi on navratri 2017 | Patrika News

मप्र में यहां बंजारों ने की थी बूढ़ी माता की स्थापना… दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं कष्ट

locationहोशंगाबादPublished: Sep 25, 2017 12:40:29 pm

Submitted by:

Manoj Kundoo

इटारसी के मालवीयगंज क्षेत्र में प्राचीन मंदिर, नवरात्र पर की गई 400 घट स्थापना

boodhi mata mandir itarsi on navratri 2017

boodhi mata mandir itarsi on navratri 2017

इटारसी। प्राचीन बूढ़ी माता मंदिर, मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के इटारसी में स्थित मंदिर…मान्यता है कि मां के इस दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता। यही कारण है कि नवरात्र के अलावा भी यहां साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है। आईए जानते हैं कैसे एक मढिय़ा से विशाल स्वरूप मे पहुंचा मंदिर और कैसे नाम मिला बूढ़ी माता।
बंजारों ने की थी स्थापना
एक किवदंती के अनुसार ग्राम मेहरागांव और इटारसी के मध्य में गोमती गंगा नदी के किनारे माता खेड़ापति का निवास था। सन् 812 में राजस्थान में युद्ध हुआ। इस युद्ध के पूर्व कई बंजारे एवं मारवाड़ी राजस्थान से बाहर की ओर चल दिए। जब यह लोग इटारसी से निकले तो इन्होंने जल और खुला मैदान देखकर यहीं डेरा डाला। अपने तम्बू लगाए, इंसानों के साथ साथ ऊंट गाडर, बकरी को भी स्थान व पानी की सुविधा मिली। यहां पर इन्होंने अपनी कुलदेवी माताजी चिजासेन को स्थापित किया। (जिसे अब लोग बूढ़ी माता के नाम से जानते हैं।)
स्थापना के बाद देवीजी को भूला परिवार
राजस्थान में लड़ाई समाप्त हुई, बंजारे वापस गए तब उन्होंने कुलदेवी को भी ले जाना चाहा। तब माता जी बोली अब मैं यहीं रहूंगी। सभी बंजारों ने मिलकर निर्णय लिया और उन्होंने लखन सिंह बंजारा को देवी की सेवा में छोड़ दिया और यहां से चले गए। कुछ दिनोंं तक लखनसिंह यहां रहा। कुछ समझ न आने के कारण वह सलकनपुर जाकर रहने लगा। वहां पहाड़ पर अपने मवेशियों को चराता था। इस तरह पूरा परिवार माताजी को भूल गया। परंतु तब भी हर समय कुछ न कुछ मुसीबत उस पर रहती थी। एक दिन स्वप्न में उसे एक कन्या दिखाई दी और बोली कि मैं तेरी कुलदेवी हूं, मुझे वहां अकेला छोड़कर तू भी यहां आ गया। यदि तू नहीं आ सकता, तो वहां मेरा स्थान बना दें। तेरे सारे कार्य ठीक से होने लगेंगे। जिसके बाद बूढ़ी माता मंदिर की स्थापना हुई।
नरबदी बाई ने 1918 में रखा था बूढ़ी माता नाम
बात अंग्रेजों के समय की है, यहां जंगल में झाडिय़ा थी इसलिए बहुत कम लोग जाते थे। भारत पर अंग्रेजों का शासन था उस समय मालगुजार हुआ करते थे। यहां भी आसपास के गांवों को मिलाकर एक मालगुजार ठाकुर रघुराजसिंह थे। ठाकुर साहब सिर्फ चैत्र की नवरात्रि में इस स्थान पर पूजा करने आते थे। उनके बाद उनकी पत्नी नरवदी बाई सनखेडा के मालगुजार ने आना शुरू किया और रखरखाव, साफ -सफाई शुरू की। उस समय मेहरागांव ही एक नजदीक का गांव था। वहां किसान खेती करने आते थे। इस स्थान के मध्य में होने से उन्होंने अपनी श्रद्धा भक्ति से नारियल फोडऩा, अगरबत्ती लगाना शुरू कर दिया। इस स्थान पर लोगों की आस्था बढ़ती गई और फिर कच्ची मिट्टी का चबूतरा बना कर, दो मूर्तिया गोल पत्थर की रखी गई। माता जी कुलदेवी चिलासेन का अवतार थी, उन्हीं की पूजा करते थे लोग प्रसाद चढ़ाते थे एवं कढ़ाई करते थे। नरबदी बाई ने ही चिलासेन का नाम सन् 1918 में बदलकर बूढ़ी माता रख दिया। तब से यह स्थान बूढ़ी माता के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
गांव के मुहाने पर था मंदिर
मान्यता के अनुसार पुराने समय में गांव की सीमा के पास खोखला माता या मरई माता या खेड़ापति माता के नाम से मंदिर स्थापित किए जाते थे। जो कई तरह से उस गांव की रक्षा करते थे। मानना था कि इनमें बसी माता गांव की चारों दिशाओं से आने वाली बाधाओं से रक्षा करती हैं। इसी तरह बूढी माता मंदिर की शुरूआत में कहा जाता है कि एक छोटी सी मढिय़ा थी, जो मेहरागांव की सीमा होने के कारण खेडापति माता थी। बाद में इन्हीं खेडापति माता का नाम श्रीसप्तशती में 108 देवियों के नामों में से एक नाम वृध्द माता के नाम से ही बूढी माता नाम हुआ।
नवरात्रि में की गई है 400 घट स्थापना
नवरात्र उत्सव पर मंदिर में प्रतिदिन सैंकड़ों की संख्या में भक्त पूजा अर्चना के लिए आ रहे हैं। मंदिर परिसर में 400 घट स्थापना की गई है। लगातार यह संख्या प्रतिवर्ष बढ़ती जा रही है। मंदिर कभी एक छोटी सी मढिय़ा हुआ करती थी, जिसका स्वरूप लगातार बढ़ता जा रहा है। जनमानस की धार्मिक आस्थाओं का केंद्र बूढी माता मंदिर की स्थापना को लेकर कई कथा सामने आती है। आज भक्तों की अटूट श्रद्धा के रहते मंदिर एक सिध्द स्थान बन गया। यहां पर की गई मनोकामना पूरी होती है और यही वजह है दूर-दूर से लोग यहां दर्शन करने आते हैं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो