महाराष्ट्र में मेले को लेकर वाहनों की बुकिंग फुल
मेले में आने को लेकर महाराष्ट्र में हचचल शुरू हो गई है। लोगों ने बसों और वाहनों की बुकिंग भी शुरू कर दी है। इस बार बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे। महाराष्ट्र के सूत्र बताते हैं कि बसों ने भी महादेव मेले को लेकर अपने रूटों , टाइमिंग और किरायों की घोषित कर दिया है। 9 दिनी मेले में सबसे ’यादा संख्या महाराष्ट्र के श्रद्धालुओं की सबसे बड़ी संख्या रहती है। जो 1326 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बने चौरागढ़ मंदिर, महादेव, जटाशंकर और गुप्त महादेव मंदिर में भगवान शंकर के दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं। चौरागढ़ मंदिर में भक्त त्रिशूल भी भेंट करते हैं।
मेले में आने को लेकर महाराष्ट्र में हचचल शुरू हो गई है। लोगों ने बसों और वाहनों की बुकिंग भी शुरू कर दी है। इस बार बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे। महाराष्ट्र के सूत्र बताते हैं कि बसों ने भी महादेव मेले को लेकर अपने रूटों , टाइमिंग और किरायों की घोषित कर दिया है। 9 दिनी मेले में सबसे ’यादा संख्या महाराष्ट्र के श्रद्धालुओं की सबसे बड़ी संख्या रहती है। जो 1326 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बने चौरागढ़ मंदिर, महादेव, जटाशंकर और गुप्त महादेव मंदिर में भगवान शंकर के दर्शन के लिए श्रद्धालु पहुंचते हैं। चौरागढ़ मंदिर में भक्त त्रिशूल भी भेंट करते हैं।
एक किमी कच्चा रास्ता फिर पक्की सीढिय़ां
चौरागढ़ मंदिर तक जाने के लिए 1 किमी कच्चा रास्ते पर पैदल चलना पड़ता है । मंदिर की 1300 सीढिय़ां शुरू होती हैं। इस 1 किमी मार्ग को पक्का करना जरूरी है। अभी यहां मिट्टी और मुरम डाली गई है। मन्नतें लेकर पहुंचने वाले कई भक्त नंगे पैर यात्रा करते हैं। उन्हें असुविधा का सामना करना पड़ता है। यह इलाका एसटीआर में आता है। इसलिए अधिकारी नियमों का हवाला देकर यहां निर्माण नहीं करते। महादेव मेला समिति के गैर शासकीय सदस्यों ने निर्माण की मांग की है।
चौरागढ़ मंदिर तक जाने के लिए 1 किमी कच्चा रास्ते पर पैदल चलना पड़ता है । मंदिर की 1300 सीढिय़ां शुरू होती हैं। इस 1 किमी मार्ग को पक्का करना जरूरी है। अभी यहां मिट्टी और मुरम डाली गई है। मन्नतें लेकर पहुंचने वाले कई भक्त नंगे पैर यात्रा करते हैं। उन्हें असुविधा का सामना करना पड़ता है। यह इलाका एसटीआर में आता है। इसलिए अधिकारी नियमों का हवाला देकर यहां निर्माण नहीं करते। महादेव मेला समिति के गैर शासकीय सदस्यों ने निर्माण की मांग की है।
शिवजी को बहनोई मानते हैं यह लोग - माता पार्वती ने महाराष्ट्र में एक बार मैना गौंडनी का रूप धारण किया था। इस वजह से महाराष्ट्र के वाशिंदे माता को बहन और भोलेशंकर को बहनोई और भगवान गणेश को भांजा मानते हैं।
-एक किंवदंती यह भी प्रचलित है कि भस्मासुर से बचने शिवजी ने चौरागढ़ की पहाडिय़ों में शरण ली थी।
इसलिए चढ़ाते हैं त्रिशूल
बताया जाता है चौरा बाबा ने कई सालों तक इसी पहाड़ पर तपस्या की, जिसके बाद भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि बाबा के नाम से यहां भोलेनाथ जाने जाएंगे। तभी से पहाड़ी की चोटी का नाम बाबा के नाम पर चौरागढ़ रखा गया। इस दौरान भोलेनाथ अपना त्रिशूल चौरागढ़ में छोड़ गए थे। उस समय से यहां त्रिशुल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है। पचमढ़ी के चौरागढ़ महादाव के भक्त एक क्विंटल तक वजनी त्रिशूल को अपने कांधे पर लेकर चौरागढ़ मंदिर तक पहुंच जाते हैं।
बताया जाता है चौरा बाबा ने कई सालों तक इसी पहाड़ पर तपस्या की, जिसके बाद भगवान ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि बाबा के नाम से यहां भोलेनाथ जाने जाएंगे। तभी से पहाड़ी की चोटी का नाम बाबा के नाम पर चौरागढ़ रखा गया। इस दौरान भोलेनाथ अपना त्रिशूल चौरागढ़ में छोड़ गए थे। उस समय से यहां त्रिशुल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है। पचमढ़ी के चौरागढ़ महादाव के भक्त एक क्विंटल तक वजनी त्रिशूल को अपने कांधे पर लेकर चौरागढ़ मंदिर तक पहुंच जाते हैं।
सालभर होती है त्रिशूल की पूजा
भक्तों के अनुसार शिवजी से मन्नत मांगने के बाद उनके नाम का त्रिशूल घर ले जाते हैं। सालभर त्रिशूल की पूजा-अर्चना घर पर ही करते हैं। इसके बाद महाशिवरात्रि पर त्रिशूल कांधे पर रखकर पैदल-पैदल पचमढ़ी आते हैं और शिवजी के दरबार में पहुंच कर त्रिशूल चढ़ाते हैं। भक्तों की मन्नतें भी पूरी हो जाती है। इस पूरे में लाखों शिवलिंग देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि शिवजी के दरबार में कितने लोग अपनी अर्जी लगा चुके हैं।
भक्तों के अनुसार शिवजी से मन्नत मांगने के बाद उनके नाम का त्रिशूल घर ले जाते हैं। सालभर त्रिशूल की पूजा-अर्चना घर पर ही करते हैं। इसके बाद महाशिवरात्रि पर त्रिशूल कांधे पर रखकर पैदल-पैदल पचमढ़ी आते हैं और शिवजी के दरबार में पहुंच कर त्रिशूल चढ़ाते हैं। भक्तों की मन्नतें भी पूरी हो जाती है। इस पूरे में लाखों शिवलिंग देखकर आप अंदाजा लगा सकते हैं कि शिवजी के दरबार में कितने लोग अपनी अर्जी लगा चुके हैं।
पैदल ही चले आते हैं श्रद्धालु महाशिवरात्रि के मेले के दौरान छिंदवाड़ा, बैतूल, पांडुरना और महाराष्ट्र से लगे सैकड़ों गांवों से श्रद्धालु पैदल ही पचमढ़ी आते हैं और अपने कंधे पर रख लाते हैं छोटे-बढ़े त्रिशूल। यही कारण है कि अब चौरागढ़ पहाड़ी पर असंख्य त्रिशूल दिखाई देते हैं।
इनका कहना है
महादेव मेले में इस बार सुरक्षा को लेकर पुख्ता इंतजाम कर रहे हैं , हमने करीब 250 लोगों की मांग की है। पचमढ़ी मेले में पुख्ता सुरक्षा के इंतजाम रहेंगे। हम हर पाइंट पर पुलिस की सुरक्षा के इंतजाम कर रहे हैं। - डॉ.गुरुकरण सिंह, एसपी नर्मदापुरम
महादेव मेले में इस बार सुरक्षा को लेकर पुख्ता इंतजाम कर रहे हैं , हमने करीब 250 लोगों की मांग की है। पचमढ़ी मेले में पुख्ता सुरक्षा के इंतजाम रहेंगे। हम हर पाइंट पर पुलिस की सुरक्षा के इंतजाम कर रहे हैं। - डॉ.गुरुकरण सिंह, एसपी नर्मदापुरम
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हमने पचमढ़ी महादेव मेले के लिए 16 पाइंट में 54 से अधिक स्टॉफ लगाया है । जहां श्रद्धालुओं को स्वास्थ्य सेवाएं मिलेगी । दवाओं की पूरी तरह से व्यवस्थाएं की गई है, हमारी तैयारियां मेले को लेकर पूरी है।- डॉ.प्रदीप मोजेस
हमने पचमढ़ी महादेव मेले के लिए 16 पाइंट में 54 से अधिक स्टॉफ लगाया है । जहां श्रद्धालुओं को स्वास्थ्य सेवाएं मिलेगी । दवाओं की पूरी तरह से व्यवस्थाएं की गई है, हमारी तैयारियां मेले को लेकर पूरी है।- डॉ.प्रदीप मोजेस
- मेल की प्रशासनिक स्तर पर पूरी तरह से तैयारियां कर ली गई है। पुलिस की पुख्ता व्यवस्था, स्वास्थ्य विभाग की तैनाती की जाएगी। इसके साथ प्रशासन प्रयास कर रहा है, आने वाले श्रद्धालुओं को पीने के पानी से लेकर हर सुविधा मुहैया कराया जाए।- - नीरज कुमार सिंह, कलेक्टर नर्मदापुरम