शिक्षकों के लिए बने मिसाल
यह हैं सिवनी मालवा से 22 किलोमीटर दूर मकोडिया गांव के शासकीय माध्यमिक शाला के दृष्टिबाधित टीचर मोहन लाल साहू, जो न खुद हारे और न ही अब बच्चों को हारने दे रहे हैं। वह वर्ष 2002 से ब्रेललिपि के माध्यम से सामाजिक विज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं। मोहन बताते हैं, ‘मैं, देख नहीं सकता हूं लेकिन फिरपढ़ाने में कोई दिक्कत नहीं होती। अभी तक 500 से ज्यादा बच्चों को शिक्षित कर चुके हैं। साथ ही मोहन साहू अंताक्षरी के माध्यम से अंग्रेजी-हिंदी का ज्ञान भी करा रहे हैं।
यह हैं सिवनी मालवा से 22 किलोमीटर दूर मकोडिया गांव के शासकीय माध्यमिक शाला के दृष्टिबाधित टीचर मोहन लाल साहू, जो न खुद हारे और न ही अब बच्चों को हारने दे रहे हैं। वह वर्ष 2002 से ब्रेललिपि के माध्यम से सामाजिक विज्ञान की शिक्षा दे रहे हैं। मोहन बताते हैं, ‘मैं, देख नहीं सकता हूं लेकिन फिरपढ़ाने में कोई दिक्कत नहीं होती। अभी तक 500 से ज्यादा बच्चों को शिक्षित कर चुके हैं। साथ ही मोहन साहू अंताक्षरी के माध्यम से अंग्रेजी-हिंदी का ज्ञान भी करा रहे हैं।
सरकारी स्कूल की बदली सूरत
यह हैं, खेड़ला गांव स्थित शासकीय प्राथमिक शाला की प्रभारी प्राचार्य कला मीना जिन्होनें अपने स्कूल के स्टॉफ के साथ मिलकर सरकारी स्कूल की ही सूरत ही बदल डाली। यह गुरू नि:स्वार्थ भाव से बच्चों को शिक्षित करने के लिए अपने पैसों से समय से पहले गणवेश, स्कूल की पुताई और हर सुविधाए देतीं है। उन्होंने स्कूल की सूरत प्रायवेट जैसी कर दी, इस कारण दूर-दराज के गांव के बच्चे भी यहां पढऩे आ रहे हैं। यहां शिक्षा भी प्राइवेट स्कूल को मात देती है।
यह हैं, खेड़ला गांव स्थित शासकीय प्राथमिक शाला की प्रभारी प्राचार्य कला मीना जिन्होनें अपने स्कूल के स्टॉफ के साथ मिलकर सरकारी स्कूल की ही सूरत ही बदल डाली। यह गुरू नि:स्वार्थ भाव से बच्चों को शिक्षित करने के लिए अपने पैसों से समय से पहले गणवेश, स्कूल की पुताई और हर सुविधाए देतीं है। उन्होंने स्कूल की सूरत प्रायवेट जैसी कर दी, इस कारण दूर-दराज के गांव के बच्चे भी यहां पढऩे आ रहे हैं। यहां शिक्षा भी प्राइवेट स्कूल को मात देती है।