संतान के सुख, समृद्धि और दीर्र्घायु के लिए महिलाएं पारंपरिक हलषष्ठी का व्रत करेंगी। महिलाएं पारंपरिक व्रत के विधान प्रकृति और शारीरिक सुरक्षा का संदेश देते हैं। बतां दे कि पसायदान के चावल खाने से लेकर कांच की पूजा करने तक हर विधि विधान का विशेष महत्व है।
आचार्य सोमेश परसाई के अनुसार यह व्रत केवल पुत्रों के लिए ही नहीं हैं। बल्कि बालिकाओं को भी इसका प्रसार स्वास्थ्य की बेहतरी के लिए दिया जाना चाहिए।
ब्राम्हण समाज में चली आ रही पंरपरा
ब्राह्मण समाज के कुछ परिवारों में सवा 100 साल से दीवार पर गोबर से हल छठ माता और उनके छह पुत्रों की आकृति बनाने की परंपरा निभाई जा रही है। शहर में रहने वाले परिवार में निर्मला तिवारी ने बताया कि सवा सौ साल उनके यहां मांडना की की पंरपरा चली आ रही हैं। साथ ही इस पंरपरा को जीवित रखने के लिए उन्होंने अपनी बेटियों को यह सीखाया है। दिल्ली में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर पूजा तिवारी, चेतना, आरती तीनों भैंस के गोबर से घर की दीवार पर हलछठ माता की आकृति बनाती है।
ऐसे प्रकृति और सेहत की सुरक्षा का संदेश
1. हरछठ की पूजा महुआ बारिश के मौसम में पेट में मंदाकिनी जैसे उद्योग हो जाते हैं। महुआ का सेवन करने से मौसम से जनित उदर रोग दूर होते हैं।