वर्ष 1885 से शुरू हुआ था मंचन
इस रामलीला की शुरुआत वर्ष 1870 के आस-पास सेठ नन्हेलाल रईस ने की थी। वहीं जानकारी के मुताबिक पूर्ण रूप से मंचन वर्ष 1885 से शुरू हुआ। तब से अब तक रामलीला का यह मंचन जारी है।
इसलिए की जाती थी मशाल की रोशनी
शुरुआती दौर ऐसा था जब बिजली नहीं हुआ करती थी। लोग चिरागों, दीयों और मशालों से ही रोशनी करते थे। इसीलिए उस दौर में रामलीला का मंचन मशाल की रोशनी में होता था। मंच के आसपास लोग मशाल लेकर खड़े रहते थे। उसी रोशनी में रामलीला का समा बंधा रहता था। बाद में बिजली की व्यवस्था हुई। वर्तमान में हाईमास्ट लैंप से लेकर आकर्षक आधुनिक रोशनी का इस्तेमाल होता है।
बनारस से खरीदे थे संसाधन
जानकारी के मुताबिक रामलीला का नियमित मंचन शुरू होने के बाद सेठ नन्हेलाल ने करीब 20 हजार रुपए खर्च कर रामलीला के लिए आवश्यक संसाधन बनारस से खरीदे थे। इनमें जरीदार पौशाक, चांदी के मुकुट, छत्र, कवच, राज सिंहासन, चांदी का दंड, चांदी की चंवर आदि शामिल थे। वर्तमान में भी इस रामलीला में वही सामान इस्तेमाल किया जाता है।
अब शर्मा परिवार संभाल रहा जिम्मेदारी
सेठा नन्हेलाल के निधन के बाद रामलीला की जिम्मेदारी छोटे भाई सेठ घासीराम और सेठानी सरजूबाई ने संभाली। वर्ष 1930 से शर्मा परिवार के सदस्य व्यवस्था संभाल रहे हैं। वर्ष 1970 तक पं. रामलाल शर्मा ने जिम्मेदारी संभाली।
यहां होता था भरत मिलाप
कई वर्षो तक रामलीला नर्मदा तट पर आयोजित की जाती रही। इस दौरान भरत-मिलाप का प्रसंग अनूठा होता था। नावघाट पर अयोध्या नगरी बसाई जाती थी। वहां से भरत नाव में बैठकर राम-लक्ष्मण से मिलने सेठानी घाट आते थे।
नारद तपस्या से डोलने लगा इन्द्रासन
घट स्थापना कर किया शुभारंभ
मंगलवार को घट स्थापना एवं मुकुट पूजन से रामलीला का शुभारंभ हुआ। प्राचीन श्रीराम मंदिर में दोपहर में अनुष्ठान के अंतर्गत जब तक लीला चलेगी तब तक के लिए घट की स्थापना की गई है। श्रीराम , लक्ष्मण , जानकी , भरत एवं शत्रुघ्न के पात्रों द्वारा पूजा अर्चना की गई । इसके बाद अभिनय करने वालों ने सेठानी घाट एवं दशहरे मैदान पर जाकर पूजन किया। प्राचीन नर्मदा मंदिर के सामने सेठानी घाट पर बने मंचों से शंकर विवाह नारद मोह का मंचन किया गया।