सबसे पहले बच्चे की उम्र देखी जाती है। इसके बाद फिजिकल, जिसमें उसकी हाइट और कद काठी देखी जाती है। कुछ बच्चे हाइट में छोटे होते हैं तो उन्हें आगे बढऩे में काफी संघर्ष करना पड़ता है। इसके अलावा बच्चे के अंदर हॉकी की कितनी समझ है, उसके खेलने की शैली कैसी है। पासिंग करने और गोल करने का तरीका क्या है। यह देखा जाता है। यहां सिलेक्ट बच्चों का ट्रायल भोपाल में होगा। इसके बाद अकादमी की मौजूदा समय में खाली सीटों को सिलेक्टेड बच्चों से रखा जाएगा। बाकी को वापस भेज दिया जाएगा। इसके बाद सिलेक्टेड बच्चों को तीन से चार साल प्रशिक्षण के लिए अकादमी में भेजा जाएगा। वहां कोच उनका परफॉरमेंस देखेंगे कि बच्चा कितना आगे जा सकता है। सरकार ने २९ जिलों के फीडर सेंटर में इसे शुरू किया है। बच्चों को साल में एक किट दी जाती है साथ ही प्रशिक्षण के लिए कोच भी नियुक्त किया गया है।
पूरे देश में अलग-अलग जगह हॉकी अकादमी हंैं। जिनमें से मध्यप्रदेश हॉकी अकादमी में सबसे अधिक सुविधाएं हैं। खासतौर पर ग्वालियर और भोपाल अकादमी में अधिक सुविधाएं हैं। सबसे अधिक टर्फ हॉकी मैदान भी मध्यप्रदेश में है। अकेले भोपाल में ही चार हॉकी टर्फ मैदान हैं।
वुमन ने खेला ओलंपिक
मध्यप्रदेश से सबसे अधिक टैलेंट भोपाल, ग्वालियर, सिवनी से निकले हैं। सबसे अधिक वुमन खिलाड़ी ग्वालियर अकादमी से निकली हैं। वह लगातार इंडिया टीम में है और ओलंपिक भी खेली हैं। अब होशंगाबाद में भी टर्फ लग गया है तो यहां भी टैलेंट निकलेंगे। विवेक सागर इटारसी, उमर, अरमार कुरैशी, अलीशान, नीलाकांता जैसे खिलाड़ी भी मध्यप्रदेश से ही निकले हैं।