स्वतंत्रा संग्राम सेनानी अश्वनी मिश्रा ने अपने पिता शंभुदयाल मिश्रा से प्रेरणा लेते हुए 1942 में ही गवर्मेंट स्कूल में तिरगा फहराकर आजादी का बिगुल बजा दिया था। 1942 में जब महात्मा गांधी भारत छोड़ो आंदोलन में करो या मरो का निर्देश दिया था तो 11वीं कक्षा के छात्र अश्वनी कुमार ने भी इन निर्देशों का पालन किया था और देशवासियों में आजादी की अलख जगाई थी। लवो छात्रों को स्कूल जाने से रोकना, नारे लगाना, जुलूस निकालना, सूचना चिपकाना, तोड़फोड़ करना, टेलीफोन के तार काटना जैसी गतिविधियां करते थे।
16 अगस्त 1923 को जन्मे अश्वनी मिश्रा के पिता शंभुदयाल मिश्रा भी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और उन्हीं से प्रेरणा लेकर अश्वनी भी आजाद भारत के आंदोलन का हिस्सा बने। अश्वनी मिश्रा ने अंग्रेजों से भरी बॉम्बे मेल को उलटाने की भी कोशिश की थी। होशंगबाद यात्रा पर आए अंग्रेज गवर्नर हेनरी टॉयनम की हत्या की साजिश में भी वो शामिल थे। अश्वनी की इन्हीं सभी गतिविधियों के कारण उन्हें खतरनाक नेता घोषित किया गया था और सालभर से ज्यादा समय तक उन्हें स्कूल से निष्कासित कर जेल में रखा गया था।
सैनानी अश्वनी कुमार मिश्रा अपने पिता शंभू दयाल मिश्रा और लाला अर्जुन सिंह के साथ रहकर रोजाना प्रभात फेरी व जुलूस निकलवाते थे। पं. मिश्रा ने हरिजन सेवक संघ की स्थापना की एवं प्रथम हरिजन कर्मचारी वर्ग नगरपालिका होशंगाबाद में हड़ताल कराई थी। वो आजादी के बाद उसी हाईस्कूल में व्याख्याता एवं प्राचार्य बने। उन्हें 1942 में तीन बार जेल जाना पड़ा।
संभागीय शिक्षा अधीक्षक सागर मप्र. रहते हुए मिश्रा ने 65 हायर सेकंडरी, 89 मिडिल एवं 135 प्राइमरी स्कूल पूरे संभाग में खोले। 2 नवंबर 2007 को होशंगाबाद में अश्वनी कुमार मिश्रा का निधन हो गया। निधन के कुछ समय पूर्व उच्च न्यायालय जबलपुर ने उन्हें संचालक शिक्षा घोषित किया था।