रेलवे जनसंपर्क अधिकारी आई.ए सिद्दकी ने बताया कि कंबल हर महीने धोना चाहिए, लेकिन कभी-कभी छह माह भी लग जाते हंै। इससे रेल्वे के सामने यह समस्या आ रही थी। मोटे कंबल धोने से लेकर सुखाने तक की दिक्कतें थी और रोजाना ट्रेनों में २००-४०० कंबलों को रखरखाव भी नहीं हो पा रहा था। पतले कंबलो को देखते हुए यह सारी असुविधाएं खत्म हो जाएगीं। अभी जिन गाडिय़ों के यात्रियों ने इनका इस्तेमाल किया है, उनकी तरफ से कोई शिकायत नहीं आई है। इन्हें मखमली और पतले कपड़ो में डिजाइन कराया है। जिससें यह काफी गर्म होते है।
एक कंबल धोने का खर्च 30 से 35 रूपए
रेलवे एक कंबल धोने के लिए औसतन 30 से 35 रूपए का खर्च करती है। लेकिन धुलवाई समय पर नहीं होने से हर माह पांच-दस यात्रियों द्वारा गंदे कंबल देने की शिकायत की जाती है।