शरद पूर्णिमा महत्व
साल भर की सभी पूर्णिमा में शरद पूर्णिमा ही सबसे चमकीला और देखने में आकर्षक लगता है। ऐसा इसलिए क्योंकि शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा 16 कलाओं से सुसज्जित होता है। दूसरी मान्यता के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात में ही भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग रास रचाया था। इस कारण कई स्थानों पर इसे रास पूर्णिमा के नाम से भी पुकारा जाता
है।
यह है धार्मिक मान्यता
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो लोग पूर्णिमा व्रत शुरू करना चाहते हैं उनके इसका संकल्प शरद पूर्णिमा के दिन लेना चाहिए। इसके अलावा शरद पूर्णिमा की रात में चांद की किरणें शरीर पर पडऩे से शारीरिक स्वस्थता बनी रहती है। अगर कोई आँखों की समस्या से परेशान है तो उसे शरद पूर्णिमा की चांद को खुली आँखों से देखना चाहिए। क्योंकि आयुर्वेद के जानकार ऐसा मानते हैं कि शरद पूर्णिमा की चाँद का दर्शन करने से आँखों के रोग खत्म हो जाते हैं साथ ही आँखों की रोशनी भी बढ़ती है।
कैसे रखें व्रत
शरद पूर्णिमा के व्रत में व्रती को अपने इष्ट देव का पूजन करना चाहिए। व्रत में पूरी सात्विकता बरतनी चाहिए। यानि व्रत में तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। व्रत-पूजन में इन्द्र देव और माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। पूजन में धूप, दीप, नैवेद्य (खीर) इत्यादि को शामिल करना अच्छा माना गया है। पूजन के बाद ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए। इसके बाद ब्राह्मण को यथा शक्ति दक्षिणा देनी चाहिए। लक्ष्मी जी का आशीर्वाद पाने के लिए इस पूर्णिमा पर रात्रि जागरण का विशेष महत्व है। इसलिए व्रती को चाहिए कि पूर्णिमा की रात्रि में जागरण करे। व्रती को चन्द्र को अघ्र्य देने के बाद ही अन्न ग्रहण करना चाहिए।
शरद पूर्णिमा मुहूर्त
पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 12 अक्टूबर की रात्रि 11 बजकर 54 मिनट से होगी। जबकि पूर्णिमा तिथि का समापन 13 अक्टूबर की अर्ध रात्रि 01 बजकर 47 मिनट पर होगा। इसके अलावा शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रोदय का समय संध्या 05 बजकर 56 मिनट है।