सबकी होती है अलग-अलग श्रद्धा
कई लोग भीलटदेव को नाग अवतार तो कई योगी संत का अवतार मानते है। यही नहीं भारत में कहीं भी रहने वाले हरिजन, आदिवासी, गौंड, कोरकू सभी देवी देवताओं में सबसे अधिक भीलटदेव को मानते है। प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा बताया जाता है कि पान लगने (सांप काटा) वाला व्यक्ति जब अपनी मनोती पूरी करने भीलट बाबा के मंदिर पर चढ़ता है तो जिस तरह सांप चढ़ता है उसी प्रकार लहराते हुए जमीन पर रैंगते चढ़ता है। भीलटदेव के इस स्थान पर मेले के प्रथम दिन चैत्र सुदी चौदस को भीलटदेव पडि़हार के शरीर पर आकर नीर लेते हैं और आगामी छह माह की भष्यिवाणी करते हैं। इनकी भविष्य वाणी में हवा, पानी, व्यापार, फसल रोग आदि सभी बात बताई जाती है।
दस वर्ष की उम्र में त्यागा था घर
बाबा भीलटदेव के विषय में किवदंती है कि बाबा की माता का नाम मेंदाबाई और पिता का नाम रेवजी गोली था। जो रोलगांव के गोली आदिवासी परिवार से सबंधित थे। रोलगांव अब हरदा जिले में स्थित है। बचपन से ही काफी कुसाग्र बुद्वि, और भगवान शंकर पार्वती की पूजा लीन रहने वाले भीलट बाबा 10 वर्ष की उम्र में अपना घर त्याग कर बांगला (बंगाल) पहुंच गए। जहां उन्होंने अपने इष्ट देव भवनान शंकर पार्वती की घोर तपस्या की। भीलट देव यहां धर्म व प्रेम प्रचार करते इसी सब से बंगाल में उनकी ख्याति लोगों में काफी बढ़़ गई जिससे चिढ़कर एक तांत्रिक ने भीलटदेव पर जादूटोना कर मारना चाहा । लेकिन जादू करने वाले परास्त हुए और उस देश के राजा ने अपनी कन्या राजलमती का विवाह भीलटदेव के साथ करा दिया। कुछ समय बाद भीलटदेव बांग्ला से पचमढ़ी स्थित बड़ा महादेव की शरण में आ गए। पचमढ़ी आने के पश्चात् बाबा भीलटदेव ने जिस जिस स्थान पर रात्रि विश्राम किया उस उस स्थान पर आज भी मेला लगता है। इसमें रोलगांव, रूदनखेड़ी, छिदगांव संगम, भीलटदेव सिवनी मालवा, भदभदा होशंगाबाद, छिन्दापानी, पचमढ़ी आदि स्थान शामिल हैं।
यहीं विराजे हैं भीलटदेव के मित्र भान बाबा
भीलटदेव में ही दक्षिण दिशा में थोड़ी दूरी पर ही भान बाबा का वर्षों पुराना स्थान है। यहां हर तीसरे वर्ष में वैशाख सुदी पूर्णिमा पर मेला लगता है। ऐसा कहा जाता है कि जब भीलटदेव बाबा बंगाल गए थे तब भान बाबा (भैरो बाबा) जो भीलट के मित्र थे जो उनके साथ गए थे। यहीं भीलटदेव स्थान पर ही नीचे भीलटदेव के छोटे भाई सीलटदेव का स्थान भी बना हुआ है।
कई लोग भीलटदेव को नाग अवतार तो कई योगी संत का अवतार मानते है। यही नहीं भारत में कहीं भी रहने वाले हरिजन, आदिवासी, गौंड, कोरकू सभी देवी देवताओं में सबसे अधिक भीलटदेव को मानते है। प्रत्यक्षदर्शियों द्वारा बताया जाता है कि पान लगने (सांप काटा) वाला व्यक्ति जब अपनी मनोती पूरी करने भीलट बाबा के मंदिर पर चढ़ता है तो जिस तरह सांप चढ़ता है उसी प्रकार लहराते हुए जमीन पर रैंगते चढ़ता है। भीलटदेव के इस स्थान पर मेले के प्रथम दिन चैत्र सुदी चौदस को भीलटदेव पडि़हार के शरीर पर आकर नीर लेते हैं और आगामी छह माह की भष्यिवाणी करते हैं। इनकी भविष्य वाणी में हवा, पानी, व्यापार, फसल रोग आदि सभी बात बताई जाती है।
दस वर्ष की उम्र में त्यागा था घर
बाबा भीलटदेव के विषय में किवदंती है कि बाबा की माता का नाम मेंदाबाई और पिता का नाम रेवजी गोली था। जो रोलगांव के गोली आदिवासी परिवार से सबंधित थे। रोलगांव अब हरदा जिले में स्थित है। बचपन से ही काफी कुसाग्र बुद्वि, और भगवान शंकर पार्वती की पूजा लीन रहने वाले भीलट बाबा 10 वर्ष की उम्र में अपना घर त्याग कर बांगला (बंगाल) पहुंच गए। जहां उन्होंने अपने इष्ट देव भवनान शंकर पार्वती की घोर तपस्या की। भीलट देव यहां धर्म व प्रेम प्रचार करते इसी सब से बंगाल में उनकी ख्याति लोगों में काफी बढ़़ गई जिससे चिढ़कर एक तांत्रिक ने भीलटदेव पर जादूटोना कर मारना चाहा । लेकिन जादू करने वाले परास्त हुए और उस देश के राजा ने अपनी कन्या राजलमती का विवाह भीलटदेव के साथ करा दिया। कुछ समय बाद भीलटदेव बांग्ला से पचमढ़ी स्थित बड़ा महादेव की शरण में आ गए। पचमढ़ी आने के पश्चात् बाबा भीलटदेव ने जिस जिस स्थान पर रात्रि विश्राम किया उस उस स्थान पर आज भी मेला लगता है। इसमें रोलगांव, रूदनखेड़ी, छिदगांव संगम, भीलटदेव सिवनी मालवा, भदभदा होशंगाबाद, छिन्दापानी, पचमढ़ी आदि स्थान शामिल हैं।
यहीं विराजे हैं भीलटदेव के मित्र भान बाबा
भीलटदेव में ही दक्षिण दिशा में थोड़ी दूरी पर ही भान बाबा का वर्षों पुराना स्थान है। यहां हर तीसरे वर्ष में वैशाख सुदी पूर्णिमा पर मेला लगता है। ऐसा कहा जाता है कि जब भीलटदेव बाबा बंगाल गए थे तब भान बाबा (भैरो बाबा) जो भीलट के मित्र थे जो उनके साथ गए थे। यहीं भीलटदेव स्थान पर ही नीचे भीलटदेव के छोटे भाई सीलटदेव का स्थान भी बना हुआ है।