scriptnavratri 2017 : पीपल के पेड़ से निकली थी यह माता की मूर्ति | kherapati mata mandir on navratri 2017 | Patrika News

navratri 2017 : पीपल के पेड़ से निकली थी यह माता की मूर्ति

locationहोशंगाबादPublished: Sep 25, 2017 11:42:09 pm

Submitted by:

harinath dwivedi

शहर के मोहाने पर होने के कारण नाम पड़ा खेड़ापति मंदिर

kherapati mata mandir on navratri 2017

kherapati mata mandir on navratri 2017

होशंगाबाद। मोरछली चौक स्थित खेड़ापति मंदिर सालों से शहरवासियों की आस्था का स्थान है। कहते हैं यह शहर का सबसे पुराना मंदिर है। स्थापना के समय यह मंदिर शहर के मुहाने पर था, इस कारण इसका नाम खेड़ापति मंदिर हो गया। नवरात्रि के समय यहां बड़ी संख्या में शहरवासी पूजा करने पहुंचते हैं। यहां मूर्ति स्थापना की कहानी भी रोचक है।
माता ने स्वप्न में आकर बताया था अपना स्थान
मंदिर के पास रहने वाले सुधाकर गोपालराव हर्णे बताते हैं यह मंदिर काफी पुराना है। उनका कहना है कि एक दिन गोपालराव रामचंद्र राव के स्वप्न में आकर माताजी ने पास में स्थित एक पीपल के झांड़ में मूर्ति होने की बात कही थी, अगले दिन सुबह से उक्त स्थान पर खुदाई की गई। इसके बाद आस्था स्वरुप मंदिर बनाकर उसमें मूर्ति स्थापित कर दी गई। उस समय यह स्थान शहर के मुहाने पर था, इस कारण इस मंदिर का नाम भी खेड़ापति हो गया।
आज भी शहरवासी माता पूजने जाते हैं खेड़ापति
शहर का प्राचीन मंदिर होने के कारण आज भी बड़ी संख्या में शहरवासी माता-पूजन करने के लिए यहां पहुंचते हैं। नवरात्रि के समय यहां काफी भीड़ लगती है।
इटारसी के मालवीयगंज क्षेत्र में प्राचीन मंदिर

इटारसी. प्राचीन बूढ़ी माता मंदिर, मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के इटारसी में स्थित मंदिर…मान्यता है कि मां के इस दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता। यही कारण है कि नवरात्र के अलावा भी यहां साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है। आईए जानते हैं कैसे एक मढिय़ा से विशाल स्वरूप मे पहुंचा मंदिर और कैसे नाम मिला बूढ़ी माता।
बंजारों ने की थी स्थापना
एक किवदंती के अनुसार ग्राम मेहरागांव और इटारसी के मध्य में गोमती गंगा नदी के किनारे माता खेड़ापति का निवास था। सन् 812 में राजस्थान में युद्ध हुआ। इस युद्ध के पूर्व कई बंजारे एवं मारवाड़ी राजस्थान से बाहर की ओर चल दिए। जब यह लोग इटारसी से निकले तो इन्होंने जल और खुला मैदान देखकर यहीं डेरा डाला। अपने तम्बू लगाए, इंसानों के साथ साथ ऊंट गाडर, बकरी को भी स्थान व पानी की सुविधा मिली। यहां पर इन्होंने अपनी कुलदेवी माताजी चिजासेन को स्थापित किया। (जिसे अब लोग बूढ़ी माता के नाम से जानते हैं।)
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