आज भी शहरवासी माता पूजने जाते हैं खेड़ापति
शहर का प्राचीन मंदिर होने के कारण आज भी बड़ी संख्या में शहरवासी माता-पूजन करने के लिए यहां पहुंचते हैं। नवरात्रि के समय यहां काफी भीड़ लगती है।
शहर का प्राचीन मंदिर होने के कारण आज भी बड़ी संख्या में शहरवासी माता-पूजन करने के लिए यहां पहुंचते हैं। नवरात्रि के समय यहां काफी भीड़ लगती है।
इटारसी के मालवीयगंज क्षेत्र में प्राचीन मंदिर इटारसी. प्राचीन बूढ़ी माता मंदिर, मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले के इटारसी में स्थित मंदिर…मान्यता है कि मां के इस दरबार से कोई भी खाली हाथ नहीं जाता। यही कारण है कि नवरात्र के अलावा भी यहां साल भर भक्तों की भीड़ लगी रहती है। आईए जानते हैं कैसे एक मढिय़ा से विशाल स्वरूप मे पहुंचा मंदिर और कैसे नाम मिला बूढ़ी माता।
बंजारों ने की थी स्थापना
एक किवदंती के अनुसार ग्राम मेहरागांव और इटारसी के मध्य में गोमती गंगा नदी के किनारे माता खेड़ापति का निवास था। सन् 812 में राजस्थान में युद्ध हुआ। इस युद्ध के पूर्व कई बंजारे एवं मारवाड़ी राजस्थान से बाहर की ओर चल दिए। जब यह लोग इटारसी से निकले तो इन्होंने जल और खुला मैदान देखकर यहीं डेरा डाला। अपने तम्बू लगाए, इंसानों के साथ साथ ऊंट गाडर, बकरी को भी स्थान व पानी की सुविधा मिली। यहां पर इन्होंने अपनी कुलदेवी माताजी चिजासेन को स्थापित किया। (जिसे अब लोग बूढ़ी माता के नाम से जानते हैं।)
एक किवदंती के अनुसार ग्राम मेहरागांव और इटारसी के मध्य में गोमती गंगा नदी के किनारे माता खेड़ापति का निवास था। सन् 812 में राजस्थान में युद्ध हुआ। इस युद्ध के पूर्व कई बंजारे एवं मारवाड़ी राजस्थान से बाहर की ओर चल दिए। जब यह लोग इटारसी से निकले तो इन्होंने जल और खुला मैदान देखकर यहीं डेरा डाला। अपने तम्बू लगाए, इंसानों के साथ साथ ऊंट गाडर, बकरी को भी स्थान व पानी की सुविधा मिली। यहां पर इन्होंने अपनी कुलदेवी माताजी चिजासेन को स्थापित किया। (जिसे अब लोग बूढ़ी माता के नाम से जानते हैं।)