‘कु’ का अर्थ है ‘कुछ’, ‘ऊष्मा’ का अर्थ है ‘ताप’ और ‘अंडा’ का अर्थ है ‘ब्रह्मांड. शास्त्रों के अुनसार मां कुष्मांडा ने अपनी दिव्य मुस्कान से संसार में फैले अंधकार को दूर किया था। चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए माता कुष्मांडा सभी दुखों को हरने वाली मां कहा जाता है। इनका निवास स्थान सूर्य है। यही वजह है माता कुष्मांडा के पीछे सूर्य का तेज दर्शाया जाता है। मां दुर्गा का यह इकलौता ऐसा रूप है जिन्हें सूर्यलोक में रहने की शक्ति प्राप्त है। देवी को कुम्हड़े की बलि अति प्रिय है।
मां कुष्मांडा का रूप
चेहरे पर हल्की मुस्कान लिए मां कुष्मांडा की आठ भुजाएं है। इसलिए इन्हे अष्टभुजा भी कहा जता है। इनके सात हाथों में कमंडल, धनुष, वाण, कमलपुष्प, कलश, गेंदा, चक्र होता है। साथ ही आठवे हाथ में सभी सिद्धियों से निधियों को देने वाली जप माला है। देवी के हाथ्ज्ञ में जो अमृत कलश है उसमें वह अपने भक्तों को दीघार्यु और उत्तम स्वास्थ्य का वरदान देती है।
मां कुष्मांडा की पूजा विधि
– नवरात्रि के चौथे दिन सुबह-सवेरे उठकर स्नान कर हरे रंग के वस्त्र धारण करें।
– मां की फोटो या मूर्ति के सामने घी का दीपक जलाएं और उन्हें तिलक लगाएं।
– अब देवी को हरी इलायची, सौंफ और कुम्हड़े का भोग लगाएं।
– अब ‘ऊं कुष्मांडा देव्यै नम मंत्र का 108 बार जाप करें।
– मां ंकुष्मांडा की आरती उतारें और कसिी ब्राम्हण को भोजन कराएं या दान दें।
– इसके बाद स्वयं भी प्रसाद ग्रहण करें।