ऐसा कहना है
बुधवार को खिलाडिय़ों ने अपनी परेशानी बताई। वहीं इस समस्या के पीछे विभाग का अपना ही तर्क है। अधिकारियों की माने तो ३३ पारंपरिक खेल स्पर्धाओं के लिए शासन से बजट आबंटित होता है जबकि ऐसे खेल जिनमें खिलाडिय़ों की संख्या कम है या प्रतिस्पर्धा कम है उनके लिए बजट आबंटित नहीं किया जाता। हालांकि ऐसी स्पर्धाओं के लिए खिलाडिय़ों से संबंधित संस्था को ही खर्च उठाना पड़ता है। वहीं वार्षिक अंशदान जमा करते समय विभाग स्पर्धा में हुए खर्च को कम कर देता है। सागर खेलने गए बच्चों को राशि नहीं देने के मुद्दे पर विभाग संबंधित स्कूल प्रबंधन को ही जिम्मेदार मान रहा है।
निजी स्कूलों में विद्यार्थियों से क्रीडा शुल्क लिया जाता है। शासन के निर्देश के तहत 10 तक के विद्यार्थियों प्रति विद्यार्थी 60 रूपए और 11वीं-12वीं के विद्यार्थियों से 100 रूपए वार्षिक शुल्क लिया जाता है। इस राशि को स्कूल प्रबंधन शिक्षा विभाग को क्रीडा अंशदान के रूप में जमा करता है। नियम है कि कुल राशि का 45 प्रतिशत जिला शिक्षा कार्यालय व 15 प्रतिशत संभागीय कार्यालय में जमा करना होता है। इस राशि से ही गैर पारंपरिक स्पर्धाओं के लिए राशि खर्च की जाती है।
स्पर्धा में शामिल होने के लिए कोई राशि नहीं मिली है। अपने पैसे खर्च करके यहां आए हैं। खाने का 80 रुपए प्रतिदिन भी दे रहे हंै।
दीपक कुमार, खिलाड़ी
अभय सोनी, खिलाड़ी वार्षिक अशंदान राशि से खर्च को कम कर देते है
वे स्पर्धाएं जिनमें खिलाडिय़ों की संख्या कम है या प्रतिस्पर्धा कम है उनके लिए शासन से बजट आबंटित नहीं होता है। इसके लिए स्कूल प्रबंधन खर्च उठाता है और बाद में वार्षिक अशंदान की राशि से उक्त खर्च को कम कर दिया जाता है। यदि विद्यार्थियों से पैसे लिए हैं तो संबंधित स्कूल की गलती है।
गजेन्द्र सुराजिया, संभागीय क्रीडा अधिकारी