scriptअब मढ़ाई को नई पहचान दिलाने की तैयारी | Preparing to build a 'gharial century' in madai | Patrika News

अब मढ़ाई को नई पहचान दिलाने की तैयारी

locationहोशंगाबादPublished: Jun 29, 2019 02:13:10 pm

Submitted by:

sandeep nayak

मढ़ई में ‘घडिय़ाल सेंचुरीÓ बनाने की तैयारी

Preparing to build a 'gharial century' in madai

अब मढ़ाई तो नई पहचान दिलाने की तैयारी

सोहागपुर. अब तक बाघों के सबसे बड़े और सुरक्षित प्राकृतिक पर्यावास के रूप में ख्यात हो चुके सतपुड़ा टाइगर रिजर्व को एक और नई पहचान मिलने वाली है। यहां वन महकमा ‘घडिय़ाल सेंचुरीÓ बनाने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए मुरैना के जलीय जीव विशेषज्ञ डॉ. आरके शर्मा ने दस दिन तक मढ़ई में सर्वे कर संभावनाओं को टटोला। इसके बाद उन्होंने पाया कि यहां रेत बढ़ाकर इस क्षेत्र में मगरमच्छों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। सूत्रों के अनुसार शर्मा ने करीब 10 दिन तक मढ़ई, चूरना, बोरी, धांई, सोनपुर, नांदनेर आदि क्षेत्रों का भ्रमण किया। यह क्षेत्र जलीय संपदा से परिपूर्ण हैं और यहां मगरमच्छ पाए जाते हैं। उन्हें यहां मगरमच्छ दिखे भी। शर्मा ने वन अधिकारियों को बताया कि इलाके में प्राकृतिक रूप से मगरमच्छों को उचित संरक्षण देकर इनकी संख्या बढ़ाई जा सकती है। उनके साथ एसटीआर असिस्टेंट डायरेक्टर आरएस भदौरिया ने भी क्षेत्र का भ्रमण किया था। भदौरिया ने बताया कि शर्मा ने क्षेत्र को मगरमच्छों को उपयुक्त बताया है। एसके सिंह, फील्ड डायरेक्टर, सतपुड़ा टाइगर रिजर्व ने कहा कि एसटीआर के अंदरूनी क्षेत्र के अलावा तवा डेम में भी बड़ी संख्या में मगरमच्छ पाए जाते हैं। उनके संरक्षण की भी प्लानिंग है। डॉ. शर्मा ने रिपोर्ट सबमिट की है, उसे देखकर बताऊंगा कि क्रियान्वयन किया जाना है।

इस पर दिया ध्यान
सर्वे में जलीय संपदा वाले क्षेत्र में रेतीले क्षेत्रों की उपलब्धता तथा रेत की कमी वाले स्थानों पर ध्यान केंद्रित किया गया। क्योंकि मगरमच्छों के संरक्षण व संख्या बढ़ोतरी में रेत का अधिक महत्व होता है। रेत में ही मादा मगरमच्छ अंडे देती है तथा उचित मात्रा में रेत हो तो पर्याप्त तापमान की सीमा में अंडे सुरक्षित रहते हैं व स्वस्थ मगरमच्छ शिशु अंडों से बाहर आते हैं।
यह सलाह भी दी
सर्वे में कुछ क्षेत्रों में मगरमच्छों की संख्या अच्छी दिखी, लेकिन वहां नदी या जलस्त्रोत के किनारे मिट्टी अधिक और रेत कम थी। इन जगहों पर डॉ. शर्मा ने बाहर से रेत लाकर तथा नदियों, नालों व अन्य जलस्त्रोतों के किनारे रेत की मोटी परत बिछाने की सलाह दी। उनका कहना था कि कम से कम दो फिट मोटाई की रेत की परत मिट्टी वाले नदी किनारों पर बनानी पड़ेगी।
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