पहली बार हुआ ऐसा हाल
रवि कहते हैं, अब उन्हें इन डेडबॉडी से चाहे वह सड़ी-गली और बदबूदार ही क्यों न हो घिन जैसा नहीं लगता। इस तरह के करीब 200 शवों की चीरफाड़ कर चुके हैं। 15 साल पहले नौकरी में आए थे तब रोस्टर के आधार पर सफाईकर्मियों की पीएम में मदद के लिए ड्यूटी लगती थी। उस समय अधिकांश सहयोगी शराब पीकर ही यह काम करते थे। इसके लिए पहले उन्हें शराब पिलाना पड़ती थी लेकिन जब मेरी बारी आई तो मैं बिना नशा किए शवगृह में पहुंच गया। सामने जली हुई गर्भवती महिला की लाश थी। उसके पेट में मृत शिशु था। शव में चीरा लगाने से पहले घबराहट के कारण पसीना आ रहा था। हाथ कांप रहे थे। हिम्मत कर काम किया, लेकिन इसमें पूरे दो घंटे लग गए। अब यही काम आधा घंटे में कर लेता हूं। इस बात का भी पूरा ख्याल रखना पड़ता है कि जांच के लिए जरूरी साक्ष्य प्रभावित न हों। मैं, घर में पहला ऐसा शख्स हूं, जो यह काम करता हूं। हालांकि घरवालों को इस पर कोई एतराज नहीं है और न ही वे छुआछूत जैसा कुछ करते हैं।
रवि कहते हैं, कुछ लाशें तो वे भूल नहीं पाते। तीन साल पहले शहर के एक मर्डर केस में आई लाश आज भी आंखों से ओझल नहीं हो पा रही। आज भी पहला पोस्टमार्टम भी भूले नहीं भूल पाता हूं। सिविल सर्जन सुधीर डहेरिया कहते हैं, यह काम करने वाले नशा जरूर करते हैं, लेकिन रवि नहीं करता। वह बहुत अच्छा कर्मचारी है।