श्राद्ब पक्ष में यह न करें
– शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार सुबह-सुबह या 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है।
– भूलकर भी ब्राह्मणों को लोहे के आसन में भोजन ना कराएं।
– इसके अलावा केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन कराना भी निषेध है।
– श्राद्ध पक्ष में मांगलिक कार्य यानी सगाई और शादी से लेकर गृह प्रवेश निषेध है।
– देवकार्य से भी ज्यादा पितृकार्य का महत्व होता है।
– किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य करने से बचें।
– तैत्तीरीय संहिता के अनुसार पूर्वजों की पूजा हमेशा, दाएं कंधे में जनेऊ डालकर और दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ही करनी चाहिए।
– शास्त्रीय मान्यताओं के अनुसार सुबह-सुबह या 12 बजे से पहले किया गया श्राद्ध पितरों तक नहीं पहुंचता है।
– भूलकर भी ब्राह्मणों को लोहे के आसन में भोजन ना कराएं।
– इसके अलावा केले के पत्ते पर श्राद्ध भोजन कराना भी निषेध है।
– श्राद्ध पक्ष में मांगलिक कार्य यानी सगाई और शादी से लेकर गृह प्रवेश निषेध है।
– देवकार्य से भी ज्यादा पितृकार्य का महत्व होता है।
– किसी भी प्रकार का अनैतिक कार्य करने से बचें।
– तैत्तीरीय संहिता के अनुसार पूर्वजों की पूजा हमेशा, दाएं कंधे में जनेऊ डालकर और दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके ही करनी चाहिए।
तीन पीढ़ी तक श्राद्ध
श्राद्ध तीन पीढ़ी तक किया जाना सही माना जाता हैं इसे बंद करने के लिए अंत में सभी पितरों के लिए गया (बिहार), बद्रीनाथ जाकर तर्पण विधि एवम पिंड दान किया जाता है। इससे जीवन में पितरों का आशीर्वाद बना रहता है। एवम जीवन पितृ दोष से मुक्त होता है।
ऐसे करें पितृों का तर्पण
बड़े पुत्र या परिवार के बड़े पुरूष द्वारा ही श्राद्ध किया जाता है। इस दौरान तीन चीजों का ध्यान रखें- जिसमें धार्मिकता, चिड़चिड़ापन और गुस्सा शामिल हैं। पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए की जा रही प्रार्थना के बीच कुछ भी अशुभ नहीं होना चाहिए। दो ब्राह्मणों को भोजन, नए कपड़े, फल, मिठाई सहित दक्षिणा देनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि उन्हें जो कुछ दिया गया वो हमारे पूर्वजों तक पहुंचता है। ब्राह्मणों को दान देने के बाद गरीबों को खाना खिलाना जरूरी है ऐसा कहा जाता है जितना दान दोंगे वह उतना आपके पूर्वजों तक पहुंचता है। इसके अलावा श्राद्ध करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है इससे आपको अपने पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है जिससे आपके घर में खुशहाली रहती है।
क्या है पितृ तर्पण और पूजन
पितृपक्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर 16 दिनों तक चलते हैं। नर्मदा तट सहित अन्य तीर्थ स्थलों पर पर कुशा से पितृ पूजन-तर्पण होता है। कुशा की उत्पत्ति अमृत से है। कुशा व्दारा तर्पण करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं। देवता, ऋषि-मुनी सभी को कुशा से जल तर्पण होता है। बिहार के गया का विशेष महत्व है। यहां देश भर से लोग पहुंचते हैं। गया में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों देवता विराजमान रहते हैं। विष्णु का एक चरण वहां स्थापित है। मंदिर विष्णु चरण से विख्यात है। अक्षय भट्ट की धर्मशिला में अधोगति प्राप्त पितरों का विशेष पूजन होता है। क्या है पिंडदान का महत्व मानव शरीर को पिंड उत्पत्ति बताई गई है, इसलिए सप्त धान्य, मावा, सफेद तिल, स्वर्ण-चांदी की भस्म, चावल, सुंगधित दृव्य, दूध-घी इनसे पिंड बनाकर मंत्रों से पितरों का आव्हान कर जागृत मानकर पूजन किया जाता है। पिंड साक्षात देवताओं एवं पितृ का स्वरूप होता है। पिंड के पूजन से मानव अपने वंश का उद्धार करता है। चाहे वह किसी भी योनी में हो, तर्पण से मुक्ति मिलती है।
श्राद्ध तीन पीढ़ी तक किया जाना सही माना जाता हैं इसे बंद करने के लिए अंत में सभी पितरों के लिए गया (बिहार), बद्रीनाथ जाकर तर्पण विधि एवम पिंड दान किया जाता है। इससे जीवन में पितरों का आशीर्वाद बना रहता है। एवम जीवन पितृ दोष से मुक्त होता है।
ऐसे करें पितृों का तर्पण
बड़े पुत्र या परिवार के बड़े पुरूष द्वारा ही श्राद्ध किया जाता है। इस दौरान तीन चीजों का ध्यान रखें- जिसमें धार्मिकता, चिड़चिड़ापन और गुस्सा शामिल हैं। पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए की जा रही प्रार्थना के बीच कुछ भी अशुभ नहीं होना चाहिए। दो ब्राह्मणों को भोजन, नए कपड़े, फल, मिठाई सहित दक्षिणा देनी चाहिए। ऐसा माना जाता है कि उन्हें जो कुछ दिया गया वो हमारे पूर्वजों तक पहुंचता है। ब्राह्मणों को दान देने के बाद गरीबों को खाना खिलाना जरूरी है ऐसा कहा जाता है जितना दान दोंगे वह उतना आपके पूर्वजों तक पहुंचता है। इसके अलावा श्राद्ध करना इसलिए भी महत्वपूर्ण है इससे आपको अपने पूर्वजों का आशीर्वाद मिलता है जिससे आपके घर में खुशहाली रहती है।
क्या है पितृ तर्पण और पूजन
पितृपक्ष पूर्णिमा से प्रारंभ होकर 16 दिनों तक चलते हैं। नर्मदा तट सहित अन्य तीर्थ स्थलों पर पर कुशा से पितृ पूजन-तर्पण होता है। कुशा की उत्पत्ति अमृत से है। कुशा व्दारा तर्पण करने से पितृगण प्रसन्न होते हैं। देवता, ऋषि-मुनी सभी को कुशा से जल तर्पण होता है। बिहार के गया का विशेष महत्व है। यहां देश भर से लोग पहुंचते हैं। गया में ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों देवता विराजमान रहते हैं। विष्णु का एक चरण वहां स्थापित है। मंदिर विष्णु चरण से विख्यात है। अक्षय भट्ट की धर्मशिला में अधोगति प्राप्त पितरों का विशेष पूजन होता है। क्या है पिंडदान का महत्व मानव शरीर को पिंड उत्पत्ति बताई गई है, इसलिए सप्त धान्य, मावा, सफेद तिल, स्वर्ण-चांदी की भस्म, चावल, सुंगधित दृव्य, दूध-घी इनसे पिंड बनाकर मंत्रों से पितरों का आव्हान कर जागृत मानकर पूजन किया जाता है। पिंड साक्षात देवताओं एवं पितृ का स्वरूप होता है। पिंड के पूजन से मानव अपने वंश का उद्धार करता है। चाहे वह किसी भी योनी में हो, तर्पण से मुक्ति मिलती है।
दान का महत्व
श्राद्ध में दान का बहुत अधिक महत्व है। इन दिनों तक ब्राह्मणों को दान दिया जाता है। जिसमे अनाज, बर्तन, कपड़े आदि श्रद्धानुसार दान दिया जाता है। इन दिनों गरीबो को भोजन भी कराया जाता हैं।
श्राद्ध में दान का बहुत अधिक महत्व है। इन दिनों तक ब्राह्मणों को दान दिया जाता है। जिसमे अनाज, बर्तन, कपड़े आदि श्रद्धानुसार दान दिया जाता है। इन दिनों गरीबो को भोजन भी कराया जाता हैं।