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होशंगाबाद

श्रावण स्पेशल : जानिए कितना रोचक है भगवान शिव का आलोकिक संसार

सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति हैं शिव , शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव भी कहा जाता है।

होशंगाबादJul 17, 2019 / 12:50 pm

govind chouhan

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श्रावण स्पेशल : जानिए कितना रोचक है भगवान शिव का आलोकिक संसार

होशंगाबाद. ( गोविंद चौहान ) शिव या महादेव हिंदू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण देवताओं में से एक है। इन्हें देवों के देव भी कहते हैं। उनकी पूजा शिवलिंग तथा मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं। शिव सभी को समान दृष्टि से देखते है इसलिये उन्हें महादेव भी कहा जाता है। श्रावण मास भगवान शिव को सबसे प्रिय है। इसीलिए पूरे महीने उनकी भक्ति आराधना होती है। भक्ति आराधना के इस महामास में प्रस्तुत हैं भगवान शिव से जुड़ी रोचक जानकारियां जो शायद आप नहीं जानते होंगे।
परिचय
उपाधि -सृष्टि के संहारकर्ता
जीवनसाथी – माता पार्वती
संतान – कार्तिकेय, गणेश
महापर्व – शिवरात्रि
आवास -कैलाश पर्वत
मूल मंत्र -ओम नम: शिवाय
प्रमुख शस्त्र – त्रिशूल, धनुष, डमरु इत्यादि
प्रमुख वाहन -नंदी

शिवलिंग क्या है
शिव का अर्थ शुभ और ***** का अर्थ ज्योतिपिंड। शिवलिंग दो प्रकार के होते हैं। पहला उल्कापिंड की तरह काला अंडाकार। इस तरह के शिवलिंग को ही ज्योर्तिलिंग कहते हैं। दूसरा मानव द्वारा निर्मित पारे से बना शिवलिंग होता है। इसे पारद शिवलिंग कहा जाता है। इसके अलावा भी मुख्यत: 6 प्रकार के शिवलिंग बताए गए हैं।
इनमें देव लिंग, आसुर लिंग, अर्श लिंग, पुराण लिंग, मनुष्य ***** एवं स्वयंभू प्रमुख हैं।
शिव का व्यक्तित्व और स्वरूप
शिव के मस्तक पर एक ओर चंद्र है, तो दूसरी ओर महाविषधर सर्प भी उनके गले का हार है। वे अर्धनारीश्वर हैं। सौम्य, आशुतोष होते हुए भी भयंकर रुद्र हैं। शिव संपूर्ण सृष्टि का भरण-पोषण करते हैं। पृथ्वी पर बीते हुए इतिहास में सतयुग से कलयुग तक, एक ही मानव शरीर ऐसा है जिसके ललाट पर ज्योति है। इसी स्वरूप द्वारा जीवन व्यतीत कर परमात्मा ने मानव को वेदों का ज्ञान प्रदान किया है जो मानव के लिए अत्यंत ही कल्याणकारी साबित हुआ है।
कैसे हुई शिव की उत्पत्ति
माना जाता है कि भगवान शिव का जन्म नहीं हुआ है वे स्वयंभू हैं। लेकिन पुराणों में उनकी उत्पत्ति का विवरण मिलता है। विष्णु पुराण के अनुसार ब्रह्मा भगवान विष्णु की नाभि कमल से पैदा हुए जबकि शिव भगवान विष्णु के माथे के तेज से उत्पन्न हुए बताए गए हैं। श्रीमद् भागवत के अनुसार एक बार जब भगवान विष्णु और ब्रह्मा अहंकार से अभिभूत हो स्वयं को श्रेष्ठ बताते हुए लड़ रहे थे तब एक जलते हुए खंभे से भगवान शिव प्रकट हुए।
विष्णु पुराण के अनुसार शिव ब्रह्मा पुत्र के रूप में जन्मे माने जाते हैं।
शिव के प्रमुख गण
भगवान शिव के प्रमुख गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का ही गण माना जाता है।
क्या है शिव ग्रंथ
वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण जानकारी समाई हुई है। महर्षि वेदव्यास द्वारा लिखित शिव-पुराण को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। इस ग्रंथ में भगवान शिव की भक्ति महिमा का उल्लेख है। इसमें शिव के अवतार आदि विस्तार से समझाए गए हैं। शिव पुराण में प्रमुख रूप से शिव-भक्ति और शिव-महिमा का प्रचार-प्रसार किया गया है। शिव पुराण् में शिव के जीवन सहित उनके रहन-सहन, विवाह और उनके पुत्रों की उत्पत्ति के विषय में विशेष रूप से बताया गया है। इस पुराण में 24,000 श्लोक है तथा इसमें 6 खण्ड विद्येश्वर संहिता,रुद्र संहिता, कोटिरुद्र संहिताउमा संहिता, कैलास संहितास,वायु संहिता शामिल हैं।
क्या हैं ज्योतिर्लिंग
ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं है। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है। भारत में प्रमुख ज्योतिर्लिंग (1) सोमनाथ, (2) मल्लिकार्जुन, (3) महाकालेश्वर, (4)ओंम कारेश्वर (5) वैद्यनाथ, (6) भीमशंकर, (7) रामेश्वर, (8) नागेश्वर, (9) विश्वनाथजी, (10) त्र्यम्बकेश्वर, (11) केदारनाथ, (12) घृष्णेश्वर हैं।
शिव के 11 रुद्र अवतार
पुराण के अनुसार भगवान शिव के 11 रुद्र अवतार हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार यह ग्यारह रुद्र सदैव देवताओं की रक्षा के लिए स्वर्ग में ही रहते हैं।
ये इस प्रकार हैं-1- कपाली, 2- पिंगल, 3- भीम, 4- विरुपाक्ष, 5- विलोहित, 6- शास्ता, 7- अजपाद, 8- अहिर्बुधन्य 9- शंभु 10- चण्ड 11- भव शामिल हैं।
शिव अवतार की दस प्रमुख शक्ति
1. महाकाल- इस अवतार की शक्ति मां महाकाली मानी जाती हैं। उज्जैन में ही गढ़कालिका क्षेत्र में मां कालिका का प्राचीन मंदिर है और महाकाली का मंदिर गुजरात के पावागढ़ में है।
2. तारा- इस अवतार की शक्ति तारादेवी मानी जाती हैं। पश्चिम बंगाल के वीरभूमी में स्थित द्वारका नदी के पास महाश्मशान में तारापीठ स्थित है ।
3.बाल भुवनेश- शिव के इस अवतार की शक्ति को बाला भुवनेशी माना गया है। दस महाविद्या में से एक माता भुवनेश्वरी का शक्तिपीठ उत्तराखंड में है।
4. षोडश श्रीविद्येश- इस अवतार की शक्ति को देवी षोडशी श्रीविद्या माना जाता है। त्रिपुरा के उदरपुर के निकट राधाकिशोरपुर गांव के माताबाढ़ी पर्वत शिखर पर माता का दायां पैर गिरा था। इसकी शक्ति है त्रिपुर सुंदरी ।
5. भैरव- इस अवतार की शक्ति भैरवी गिरिजा मानी जाती हैं। उज्जैन के शिप्रा नदी तट स्थित भैरव पर्वत पर मां भैरवी का शक्तिपीठ माना गया है, जहां उनके ओष्ठ गिरे थे।
6. छिन्नमस्तक- इस अवतार की शक्ति देवी छिन्नमस्ता मानी जाती हैं। मां छिन्नमस्तिका का विख्यात सिद्धपीठ झारखंड की राजधानी रांची के रामगढ़ में है।
7. द्यूमवान- इस अवतार की शक्ति को देवी धूमावती माना जाता हैं। धूमावती मंदिर मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिद्ध शक्तिपीठ पीताम्बरा पीठ के प्रांगण में स्थित है।
8. बगलामुख- इस अवतार की शक्ति को देवी बगलामुखी माना जाता है। बगलामुखी के तीन प्रसिद्ध शक्तिपीठ हैं- हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में बगलामुखी मंदिर, मप्र के दतिया जिले में बगलामुखी मंदिर और मप्र के शाजापुर में स्थित बगलामुखी मंदिर।
9. मातंग- यह अवतार मातंगी देवी के रूप में जाना जाता है। मातंगी देवी अर्थात राजमाता दस महाविद्याओं की एक देवी है। देवी का स्थान झाबुआ के मोढेरा में है।
10. कमल- इस अवतार की शक्ति को देवी कमला माना जाता है।

शिव के प्रमुख नाम
हिन्दू धर्म में भगवान शिव को अनेक नामों से पुकारा जाता है इनमें प्रमुख हैं।
शिव-शब्द का अर्थ शुभ, स्वाभिमानिक, अनुग्रहशील, सौम्य, दयालु, उदार, मैत्रीपूर्ण होता है।
महाकाल- अर्थात समय के देवता, यह भगवान शिव का एक रूप है जो ब्राह्मण के समय आयामो को नियंत्रित करते है।
महादेव – महादेव का अर्थ है महान ईश्वरीय शक्ति।
भोला – भोले का अर्थ है कोमल हृदय, दयालु व आसानी से माफ करने वाला।
रूद्र – रूद्र से अभिप्राय जो दुखों का निर्माण व नाश करता है।
अर्धनारीश्वर – शिव और शक्ति के मिलन से अर्धनारीश्वर नाम प्रचलित हुआ।
पशुपतिनाथ – भगवान शिव को पशुपति इसलिए कहा जाता है क्योंकि वह पशु पक्षियों व जीव आत्माओं के स्वामी हैं
नटराज – नटराज को नृत्य का देवता मानते है, भगवान शिव तांडव नृत्य के प्रेमी है। इसी उन्हें नटराज कहा जाता है।
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