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आस्था की त्रिवेणी : श्रावण, शिव और कांवड़….जानिए क्या है महत्व

locationहोशंगाबादPublished: Aug 01, 2018 02:30:29 pm

Submitted by:

govind chouhan

भगवान भोलेनाथ को सबसे अधिक प्रिय होता है श्रावण का महीना, सावन के महीने में कांवड़ लाने के पीछे अनेक पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं

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आस्था की त्रिवेणी : श्रावण, शिव और कांवड़….जानिए क्या है महत्व

होशंगाबाद ( गोविंद चौहान ). बारिश के चार माह चौमासा के नाम से जाने जाते हैं। इसकी शुरुआत श्रावण मास में भगवान भोले की भक्ति से शुरू होती है। सावन का महीना भगवान शिवजी का महीना माना जाता है। क्योंकि भगवान भोलेनाथ को सबसे अधिक प्रिय होता है श्रावण का महीना। यही कारण है कि श्रावण, शिव और कांवड़ की त्रिवेणी चहुंओर देखने को मिलती है। पूरे श्रावण मास जहां मंदिरों और घरों में शिवाभिषेक जारी रहते हैं वहीं पूरे माह भोले के भक्त केसरिया रंग में रंगे कांधे पर कांवड़ रखकर मीलों की यात्रा कर कांवड़ के जल से भगवान शिव का अभिषेक करने शिवालय पहुंचते हैं।
भगवान शिव का प्रिय है सावन
कहा जाता है, कि भगवान शिव को सावन माह बेहद प्यारा होता है। क्योकि पूरे श्रावण मास भगवान शिव अपनी ससुराल राजा दक्ष की नगरी कनखल (हरिद्वार) में निवास करते हैं और इस दौरान भगवान विष्णु के शयन में जाने के कारण से तीनों लोकों की देखभाल शिवजी ही करते हैं। इसी कारण श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ सर्वाधिक आराधना की जाती है।
सावन में ही क्यों निकाली जाती है कांवड़
सावन के महीने में कांवड़ लाने के पीछे अनेक पौराणिक मान्यताएं जुड़ी हुई हैं।
– माना जाता है कि समुद्र मंथन इसी माह में हुआ था और समुद्र मंथन के दौरान जो विष निकला था, संसार को बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष का सेवन कर लिया था। विष का सेवन करने के कारण भगवान शिव का शरीर जलने लगा। तब भगवान शिव के शरीर को जलता देख देवताओं ने उन पर जल अर्पित करना शुरू कर दिया। जल अर्पित करने के कारण भगवान शंकर के शरीर को ठंडक मिली और उन्हें विष से राहत मिली।
-कांवड़ के बारे में यह भी माना जाता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने कांवड़ से गंगा का पवित्र जल लाकर भगवान शंकर पर चढ़ाया था। तभी से शिवजी पर सावन के महीने में जल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई है।
-कुछ लोगों का मानना है कि सबसे पहले श्रेतायुग में श्रवण कुमार ने पहली बार कांवड़ यात्रा शुरू की थी। श्रवण कुमार के माता-पिता ने हरिद्वार में गंगा स्नान करने की इच्छा प्रकट की थी। अपने माता-पिता की इच्छा पूरी करने के लिए श्रवण कुमार ने उन्हें कांवड़ में बैठा कर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया था।
ऐसी ही अनेक मान्यताओं के चलते श्रावण माह में भगवान शंकर की पूजा अर्चना का विशेष महत्व है और भगवान शंकर को खुश करने कांवडि़ए पवित्र नदियों का जल भगवान शिव को अर्पित कर उनका अभिषेक करते हैं और उनकी विशेष आराधना की जाती है।
केसरिया रंग में ही क्यों रंगे होते हैं कांवडि़ए
इस धार्मिक उत्सव की विशेषता है कि इस दौरान सभी श्रद्धालु केसरिया रंग के कपड़े धारण करते हैं। केसरिया रंग जीवन में ओज, साहस, आस्था और गतिशीलता का प्रतीक है। इसके अतिरिक्त कलर-थेरेपी के अनुसार केसरिया अनेक रोगों को भी दूर करता है और समाजिकता बढ़ती है। कांवड़ यात्रा दृढ इच्छाशक्ति का भी प्रतीक है।
इन चीजों से करें भोले का अभिषेक
1. जल – मंत्रों का उच्चारण करते हुए शिवलिंग पर जल चढ़ाने से स्वभाव शांत और स्नेहमय होता है।
2. इत्र -शिवलिंग पर इत्र लगाने से विचार पवित्र और शुद्ध होते हैं। इससे हम जीवन में गलत कामों के रास्ते पर जाने से बचते हैं।
3. घी- भगवान शंकर पर घी अर्पित करने से हमारी शक्ति बढ़ती है।
4. चंदन- शिवजी को चंदन चढ़ाने से हमारा व्यक्तित्व आकर्षक होता है। इससे हमें समाज में मान-सम्मान और यश मिलता है।
5. शहद- भोलेनाथ को शहद चढ़ाने से हमारी वाणी में भी शहद की तरह मिठास होती है।
6. भांग- शिव को भांग चढ़ाने से हमारी खामियां और बुराइयां दूर होती हैं।
7. केसर- शिवलिंग पर केसर अर्पित करने से हमें सौम्यता मिलती है।
8. चीनी – महादेव का शक्कर से अभिषेक करने से सुख और समृद्धि बढ़ती है। ऐसा करने से मनुष्य के जीवन से दरिद्रता चली जाती है।
9. दूध- शिव-शंकर को दूध अर्पित करने से बीमारियां दूर होती हैं और हमारा स्वास्थ्य हमेशा अच्छा बना रहता है।
10. दही -भगवान शिव को दही चढ़ाने से स्वभाव गंभीर होता है और जीवन में आने वाली परेशानियां दूर होने लगती हैं।
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