तवा कलींदा
जिले के बाबई, सेमरी, केसला, तवानगर, सुखतवा में तवा नदी एवं उसके डेम के आसपास रेतीले तट पर पैदा होने वाले मीठे-रसीले तरबूज की खासी डिमांड है। यहां पहुंचते हैं कलींदा
यूपी के झांसी, महोबा, नयागांव, बांदा, ललितपुर और महाराष्ट्र के सोलापुर, कोलापुर, नागपुर तथा बिहार भेज रहे हैं। रोजाना सौ से डेढ़ सौ ट्रक की खपत हो रही है। इसके अलावा प्रदेश के भोपाल-इंदौर, गुना, शिवपुरी, अशोक नगर, राजगढ़, छतरपुर, टीकमगढ़ आदि जिलों में तरबूज की खैप जा रही है। नर्मदा एवं तवा तट पर खरबूज (डंगरा) की पैदावार दो-तीन वर्षो से घटी है।
जिले के बाबई, सेमरी, केसला, तवानगर, सुखतवा में तवा नदी एवं उसके डेम के आसपास रेतीले तट पर पैदा होने वाले मीठे-रसीले तरबूज की खासी डिमांड है। यहां पहुंचते हैं कलींदा
यूपी के झांसी, महोबा, नयागांव, बांदा, ललितपुर और महाराष्ट्र के सोलापुर, कोलापुर, नागपुर तथा बिहार भेज रहे हैं। रोजाना सौ से डेढ़ सौ ट्रक की खपत हो रही है। इसके अलावा प्रदेश के भोपाल-इंदौर, गुना, शिवपुरी, अशोक नगर, राजगढ़, छतरपुर, टीकमगढ़ आदि जिलों में तरबूज की खैप जा रही है। नर्मदा एवं तवा तट पर खरबूज (डंगरा) की पैदावार दो-तीन वर्षो से घटी है।
भीषण तपन में दे रहा स्वाद और ठंडक
थोक व्यापारी मोहम्मद खान बताते हैं कि यह तरबूज नदी के किनारे के रेतीले मैदान की डंगरबाड़ी में प्राकृतिक रूप से पैदा होता है। इससे किसानों को आय के साथ परिवहनकर्ताओं को भी व्यवसाय मिलता है। मार्च से लेकर जून तक तरबूज की आवक रहती है।
थोक व्यापारी मोहम्मद खान बताते हैं कि यह तरबूज नदी के किनारे के रेतीले मैदान की डंगरबाड़ी में प्राकृतिक रूप से पैदा होता है। इससे किसानों को आय के साथ परिवहनकर्ताओं को भी व्यवसाय मिलता है। मार्च से लेकर जून तक तरबूज की आवक रहती है।
यह हैं भाव
बंपर आवक से पिछले वर्ष की तुलना में थोक भाव भी कम है। पिछले वर्ष 6-8 रुपए किलो बिका तरबूज इस बार 4-5 रुपए किलो बिक रहा है। वहीं शहर में इसके फुटकर दाम 10 रुपए किलो चल रहे हैं।
बंपर आवक से पिछले वर्ष की तुलना में थोक भाव भी कम है। पिछले वर्ष 6-8 रुपए किलो बिका तरबूज इस बार 4-5 रुपए किलो बिक रहा है। वहीं शहर में इसके फुटकर दाम 10 रुपए किलो चल रहे हैं।