इंद्रौर से आई थी मॉडल प्रदर्शनी
इंदौर से आमंत्रित स्त्रोत वैज्ञानिक चिल्ड्रन्स साइंस सेंटर के डॉयरेक्टर राजेंद्र सिंह ने राशिचक्र, तारामंडल, नक्षत्रों, आकाशगंगा तथा ग्रहों की प्रोजेक्टर के माध्यम से प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि एप्को की सहायता से वन अधिकार पत्र प्राप्त हितग्राहियों में पर्यावरण एवं जानकारी बढ़ाने के लिये जैवविविधता संरक्षण के पोस्टर तथा मॉडल प्रदर्शनी लगाई जा रही है। कार्यक्रम में एक्सीलेंस स्कूल केसला के प्राचार्य एस के सक्सेना, पांजराकला के पूर्व प्राचार्य एस के शर्मा मौजूद थे। प्रदर्शनी में तारामंडल को 8 से अधिक स्कूलों के 500 से ज्यादा बच्चों ने देखा।
इंदौर से आमंत्रित स्त्रोत वैज्ञानिक चिल्ड्रन्स साइंस सेंटर के डॉयरेक्टर राजेंद्र सिंह ने राशिचक्र, तारामंडल, नक्षत्रों, आकाशगंगा तथा ग्रहों की प्रोजेक्टर के माध्यम से प्रस्तुति दी। उन्होंने बताया कि एप्को की सहायता से वन अधिकार पत्र प्राप्त हितग्राहियों में पर्यावरण एवं जानकारी बढ़ाने के लिये जैवविविधता संरक्षण के पोस्टर तथा मॉडल प्रदर्शनी लगाई जा रही है। कार्यक्रम में एक्सीलेंस स्कूल केसला के प्राचार्य एस के सक्सेना, पांजराकला के पूर्व प्राचार्य एस के शर्मा मौजूद थे। प्रदर्शनी में तारामंडल को 8 से अधिक स्कूलों के 500 से ज्यादा बच्चों ने देखा।
आकाशगंगा के बारे में भी जनजातीय लोग अच्छी जानकारी रखते हैं। हालांकि, रात में सभी तारों में से सबसे ज्यादा चमकीले नजर आने वाले व्याध तारा (Sirius) और अभिजित तारा (Vega) के बारे में उनको कोई ज्ञान नहीं है। सभी आकाशीय पिंडों को लेकर प्रत्येक जनजाति की अलग-अलग परन्तु सटीक अवधारणाएं हैं और ये जनजातियां अपनी खगोल-वैज्ञानिक सांस्कृतिक जड़ों के बारे में बहुत ही रूढ़िवादी पाई गई हैं।
आमतौर पर मानसून के कारण भारत में मई से अक्तूबर के बीच आसमान में तारे कम ही दिखाई देते हैं। अतः इन जनजातियों की खगोलीय अवधारणाएं नवंबर से अप्रैल तक आकाश में दिखने वाले तारामंडलों पर विशेष रूप से केंद्रित होती हैं। शोधकर्ताओं ने एक रोचक बात यह भी देखी है कि ज्यादातर जनजातियां ग्रहों में केवल शुक्र और मंगल का ही उल्लेख करती हैं, जबकि अन्य ग्रहों की वे चर्चा नहीं करती हैं।