Lockdown: ‘मैं एक बदनसीब पिता हूं, जो आखिरी वक्त में अपने बच्चे के चेहरे को भी नहीं देख सका…’
1200 में खरीदी पुरानी साइकिल
बीबीसी से बातचीत में ज्योति ने बताया, उसके पिता एक्सीडेंट में घायल हो गए थे। पिता की बेबसी देखकर उसने घर बिहार लौट आने का फैसला किया। ज्योति ने पुरानी साइकिल खरीदने का फैसला किया। साइकिल के लिए 1200 रुपये में सौदा तय हुआ। उसने बताया कि साइकिल वाले को देने के लिए 1200 रुपये भी नहीं थे।
ऐसे में हमने उनसे विनती की और 500 रुपये अब और 700 रुपये वापस आने के बाद देने की बात कही। इस पर वह राजी हो गए। ज्योति ने बताया, हमारे पास कोरोना सहायता के तौर 1000 रुपये मिले थे। उस में से 500 रुपये साइकिल वाले को दे दिए और 500 रुपये खर्चें के लिए रख लिए।
पिता हिचके, बेटी ने दिखाई हिम्मत
15 साल की ज्योति ने बताया, ‘गुरुग्राम में खाने पीने तक के पैसे नहीं थे। मकान मालिक धमकी दे चुका था। मैंने पापा से साइकिल से चलने के लिए कहा, लेकिन पापा नहीं मानते थे। फिर मैंने जबरदस्ती की तो वह राजी हो गए।’ जब उनके घर लौटने के लिए रवाना होने की सूचना घर पहुंची तो मां फूलो देवी के चेहरे पर रौनक लौट आई। ज्योति अपने पिता मोहन पासवान को साइकिल पर बैठाकर गुरुग्राम से दरभंगा के सिंहवाड़ा स्थित अपने गांव सिरहुल्ली ले आई है।
बीमार पिता की सेवा के लिए पहुंची थी ज्योति
ज्योति कुमारी राजकीय विद्यालय में आठवीं की छात्रा है। उसके पिता मोहन पासवान गुरुग्राम में ई-रिक्शा चलते हैं। इस साल जनवरी में वह एक दुर्घटना का शिकार हो गए थे। जिसके बाद ज्योति और मां फूलो देवी परिवार संग गुरुग्राम पहुंचे। फूलो देवी ने बताया कि वह आंगनबाड़ी केंद्र में काम करती है और 10 दिन की छुट्टी लेकर आए थे। ज्योति के पिता की तबियत बहुत ज्यादा खराब थी। इसलिए ज्योति को उसके पापा की सेवा के लिए गुरुग्राम ही छोड़ आए।