प्रेगनेंसी में दवाई खाते समय न करें लापरवाही, किन्नर बच्चे का हो सकता है जन्म बताया जाता है कि देवी मां का मंदिर उत्तराखंड (Uttarakhand) के कलियासौड़ इलाके में अलकनंदा नदी के तट पर स्थित है। उन्हें यहां का रक्षक माना जाता है। महंत का कहना है कि मंदिर 1807 से भी कई साल पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार प्राकृतिक आपदा (pralay) के दौरान माता का मंदिर पूरी तरह बह गया था, लेकिन एक चट्टान से सटी मां की प्रतिमा धारों नाम के गांव में सुरक्षित अवस्था में मिली थी। तभी से गांववालों ने यहां धारी माता का मंदिर बना दिया। मान्यता है कि बद्रीनाथ जाने वाले श्रद्धालु यहां मत्था टेककर आगे बढ़ते हैं। इससे उनकी यात्रा सुखद रहती है।
बताया जाता है कि देवी मां यहां रोजाना तीन रूप बदलती हैं। वह सुबह कन्या का भेष धारण करती हैं, तो दोपहर में युवती और शाम को वृद्धा का रूप धारण करती हैं। देवी मां के प्रसन्न होने पर भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। मगर देवी मां का गुस्सा भी भयंकर है। माना जाता है कि केदरनाथ में आई प्रलय धारी देवी के गुस्से का ही नतीजा था। क्योंकि उनकी मूर्ति को हटाने की कोशिश की गई थी, जिससे देवी नाराज हो गई थीं।