राकेश ने बेहद गरीबी देखी है और कभी एक समय था जब उन्हें गुजर बसर करने के लिए दिल्ली के एक होटल में वेटर तक की नौकरी करनी पड़ी थी। राकेश पांडेय का कहना है, “ईश्वर ने मुझे इतना सक्षम बना दिया है कि मैं लोगों को कुछ मदद कर सकूं।” उन्होंने प्रयागराज में चल रहे कुंभ के दौरान पुलवामा के शहीदों की आत्मा की शांति के लिए सनातन परंपरा के अनुसार 33 हजार दीप जलाने की भी व्यवस्था की।
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राकेश का कहना है कि पुलवामा हमले की निंदा की जानी चाहिए। आमलोगों को भी शहीदों के घरवालों के बारे में भी सोचना चाहिए। उन्होंने सभी लोगों से शहीद के परिजनों को जो भी संभव हो, मदद करने की अपील की। उन्होंने कहा कि 10 मार्च को वे खुद शहीद के परिजनों से मिलने उनके घर जाएंगे। राकेश पांडेय के मित्र और बिहार के मोतिहारी के रहने वाले फिल्म निर्माता, निर्देशक अरुण पाठक का कहना है कि अगर मुसीबत के समय राकेश पांडेय जैसे लोग सामने आ जाएं, तो शहीदों के घरवालों को बड़ी राहत मिल जाती है। अरुण पाठक ने ‘शहीद-ए-आजम’ नाम की एक फिल्म बनाई थी।