बता दें कि ये मामला पठानकोट के हल्का भोया के गांव कटारु (pathankot halka bhoa) चक के चटपट बनी मंदिर (shiv temple) का है। जहां गुरुवार का नजारा देखने लायक था। इस नजारे को देखने के लिए मंदिर से पंडित व भक्त सब इकट्टा हो गए।
किया जाएगा जांच वहीं, इस पूरे मामले को लेकर वन विभाग के अधिकारी कहना है कि इस पुरातन जंगल की मिट्टी का टेस्ट किया जाएगा ताकि इस बाद का पता लगाया जा सके कि पेड़ से धुआं क्यों निकल रहा है?
ऐतिहासिक मंदिर का ये है राज जानकारी के मुताबिक चटपट बनी मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है। यहां लोग दूर-दूर से मन्नतें मांगने के लिए आते हैं। बताया जाता है कि यहां हजारों सालों पहले एक नाथ तपस्या कर रहे थे, तभी एक किसान ने उन पर हल चला दिया और उन्हें जमीन के अंदर दबा दिया। माना जाता है कि जब वह किसान दूसरे दिन यहां आया तो रातों रात यहां एक घना जंगल तैयार हो गया और जगह-जगह पानी के कुंड निकल पड़े थे।
होती है मन्नते पूरी जिसके बाद जब आस पास के गांव वालों को इस बारे में पता चला तो वे यह चमत्कार देखने पहुंच गए। जिसके बाद लोग वहां मन्नते मांगने जाने लगे, जब लोगों की मन्नतें पूरी भी होने लगीं तो उसके बाद यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया और लोग दूर-दूर से यहां माथा टेकने के लिए आने लगे।
इस पेड़ की लकड़ी को काटना माना जाता है अशुभ जानकारी के मुताबिक, इस ऐतिहासिक जंगल में भगवान शिव का मंदिर है। इस जंगल के पेड़ पंजाब या हिमाचल के जंगलों में कम ही मिलते हैं। इस जंगल के किसी भी पेड़ की लकड़ी को घरेलू इस्तेमाल के लिए काटा जाना अशुभ माना जाता है। यहां शिवरात्रि पर एक बड़ा मेला भी लगता है। लोगों का कहना है कि आज से 1600-1700 साल पहले अपने आप तैयार हुए जंगल का कुदरत का करिश्मा देखने को मिला था।
बताया जा रहा भगवान का चमत्कार जंगल में एक आम के पेड़ से अपने आप धुआं निकल रहा है। भक्त भी इसे भगवान का करिश्मा मान रहे है। भक्तों ने कहा कि पेड़ से धुंआ निकलने का चमत्कार पिछले कुछ दिनों से लगतार हो रहा है। उधर मंदिर के नाथ ने भी इसे कुदरत का करिश्मा और भगवान का चमत्कार बताया है।
आए दिन होता है यहां करिश्मा मंदिर के पुजारी के मुताबिक यह एक इतिहासिक मंदिर है और यहां आए दिन कोई ना कोई करिश्मा होता ही रहता है। उनका कहना है कि इस जंगल की एक खास बात है कि इस जंगल की लकड़ी को कोई भी अपने घर में नहीं जला सकता। क्योंकि अगर कोई ऐसा करता है तो कहा जाता है कि उसे भारी हानि का सामना करना पड़ता है। इसलिए इस जंगल की लकड़ी सिर्फ मंदिर में धुना जलाने के काम ही आती है।