सबसे पहले बता दें कि इस घटना का इतिहास बहुत ही दुखद है। इसके पीछे कई लोगों की कठिन लड़ाई और संघर्ष छिपा हुआ है। आज जिस दिन को हम अपने घरों में बैठकर चैन की नींद लेते हैं उसका श्रेय नारायण मेघाजी लोखंडे को जाता है। जैसा कि हम जानते हैं भारत पर ब्रिटिश शासकों का शासन था। उस दौर में लोगों पर बहुत जुल्म ढ़ाया जाता है। अंग्रेजों के शासनकाल में मजदूरों को सप्ताह के सातों दिन बिना छुट्टी के काम करना पड़ता था।
नारायण मेघाजी लोखंडे उस समय श्रमिकों के नेता थे। श्रमिकों की हालत को देखते हुए उन्होंने इसका जिक्र ब्रिटिश सरकार से किया। इसके साथ ही सप्ताह में एक दिन छुट्टी प्रदान करने की अनुमति भी मांगी लेकिन तत्कालीन ब्रिटिश सरकार द्वारा उनके इस निवेदन को खारिज कर दिया गया।
लोखंडे जी को यह बात कतई पसंद नहीं आई। उन्होंने श्रमिकों के साथ मिलकर इसका जमकर विरोध किया। उन्होंने सरकार की इस सख्ती के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की।विरोध प्रदर्शन किया गया। यह सब इतना आसान नहीं था। उन्होंने मजदूरों के हक के लिए काफी कुछ किया। आखिरकार मेहनत रंग लाई।
यानि कि आज जब हम आॅफिस में या किसी भी काम को करने के दौरान लंच ब्रेक लेते हैं उसके पीछे इस महान व्यक्ति के जीवन का कठिन संघर्ष छिपा हुआ है।