यहां से शुरु हुआ मामला
अयोध्या मामले की 40 दिन की पूरी सुनवाई के दौरान अगर किसी शब्द ने सबको चौंकाया होगा तो वो है लीगल टर्म यानि कानूनी जुमला। मतलब की यही है ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’। दरअसल, अयोध्या मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ, हिंदू और मुस्लिम पक्षकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सभी ने कहा कि उन्हें पूरी विवादित जमीन मिलनी चाहिए क्योंकि वो इसके असली मालिक हैं। लेकिन मामला काफी संवेदनशील है और इस बात को कोर्ट भी अच्छे से जानता है। ऐसे में कोर्ट ने सोचा कि इंसाफ पूरी अर्थों में हो भी और सभी पक्षों को इसका अहसास भी हो। लेकिन सब लोगों का ध्यान रखकर इंसाफ हो। इसी को पूरा करने के लिए ये प्रावधान किया गया।
किस अधिकार के तहत आता है
सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन के मतुाबिक, सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 और सिवलि प्रोसिजर कोड यानि सीपीसी की धारा 151 के तहत इस अधिकार का इस्तेमाल करता है। वहीं ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ का मतलब ये हुआ कि याचिकाकर्ता ने जो मांग कोर्ट से की है और अगर वो नहीं मिलती तो फिर इसका विकल्प क्या हो जो उसे दिया जा सके। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि ‘सांत्वना पुरस्कार’ के रूप में। यानि सीधा-सीधा कि अगर दो दावेदारों के विवाद वाली जमीन का मालिकाना हक किसी एक पक्ष हिंदू या फिर मुस्लिम को दिया जाए तो दूसरा पक्ष इसके बदले क्या ले सकता है। हो ये भी सकता है कि कोर्ट दूसर पक्ष को अधिग्रहित 67 एकड़ जमीन का हिस्सा या फिर कुछ और दे दे।