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अयोध्या विवाद में ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ का हुआ इस्तेमाल, जानें कैसे फैसले में अहम रोल निभाता है ये…

locationनई दिल्लीPublished: Oct 16, 2019 12:19:15 pm

Submitted by:

Prakash Chand Joshi

बुधवार शाम 5 बजे तक होगी सुनवाई

ayodhya dispute

नई दिल्ली: आज पूरे देश की नजरें अयोध्या मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट की तरफ लगी हुई है। लोगों को इंतजार है कि आखिर कोर्ट क्या फैसला सुनाएगा? और जो फैसला कोर्ट देगा क्या वो सबको बराबर का हक दे पाएगा? और भी नाजाने कितने सवालों के जवाब लोगों के मन में चल रहे होंगे। लेकिन इन सबके बीच जिस शब्द ने सबकों चौका रखा है वो है ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ चलिए आपको बताते हैं आखिर ये होता क्या है और ये काम कैसे करता है।

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यहां से शुरु हुआ मामला

अयोध्या मामले की 40 दिन की पूरी सुनवाई के दौरान अगर किसी शब्द ने सबको चौंकाया होगा तो वो है लीगल टर्म यानि कानूनी जुमला। मतलब की यही है ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’। दरअसल, अयोध्या मामले में इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ, हिंदू और मुस्लिम पक्षकार सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। सभी ने कहा कि उन्हें पूरी विवादित जमीन मिलनी चाहिए क्योंकि वो इसके असली मालिक हैं। लेकिन मामला काफी संवेदनशील है और इस बात को कोर्ट भी अच्छे से जानता है। ऐसे में कोर्ट ने सोचा कि इंसाफ पूरी अर्थों में हो भी और सभी पक्षों को इसका अहसास भी हो। लेकिन सब लोगों का ध्यान रखकर इंसाफ हो। इसी को पूरा करने के लिए ये प्रावधान किया गया।

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किस अधिकार के तहत आता है

सुप्रीम कोर्ट के वकील विष्णु शंकर जैन के मतुाबिक, सुप्रीम कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 142 और सिवलि प्रोसिजर कोड यानि सीपीसी की धारा 151 के तहत इस अधिकार का इस्तेमाल करता है। वहीं ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ का मतलब ये हुआ कि याचिकाकर्ता ने जो मांग कोर्ट से की है और अगर वो नहीं मिलती तो फिर इसका विकल्प क्या हो जो उसे दिया जा सके। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि ‘सांत्वना पुरस्कार’ के रूप में। यानि सीधा-सीधा कि अगर दो दावेदारों के विवाद वाली जमीन का मालिकाना हक किसी एक पक्ष हिंदू या फिर मुस्लिम को दिया जाए तो दूसरा पक्ष इसके बदले क्या ले सकता है। हो ये भी सकता है कि कोर्ट दूसर पक्ष को अधिग्रहित 67 एकड़ जमीन का हिस्सा या फिर कुछ और दे दे।

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