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‘डूम्सडे क्लॉक’ में 12 बजने में हैं महज 100 सेकेंड बाकी, आधी रात होते ही खत्म हो जाएगी दुनिया!

locationनई दिल्लीPublished: Jan 28, 2020 11:41:04 am

Submitted by:

Prakash Chand Joshi

अब तक का सबसे कम समय किया गया है सेट
इस घड़ी को कयामत की घड़ी भी कहा जाता है

Doomsday Clock has 12 AM in just 100 seconds the world will end as soon as midnight

Doomsday Clock has 12 AM in just 100 seconds the world will end as soon as midnight

नई दिल्ली: साल 2012 जब इस बात की चर्चा जोरों पर थी कि दुनिया इस साल खत्म हो जाएगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ, तो लोगों को लगने लगा कि ये महज अफवाह है और कुछ नहीं। लेकिन एक बार फिर से ये बात सामने आई है कि दुनिया खत्म होने में महज 100 सेकेंड का समय रह गया है। चौंकिए मत हम आपको डरा नहीं बल्कि, सच बताने जा रहे हैं क्योंकि ‘डूम्सडे क्लॉक’ ( Doomsday Clock ) यही कह रही है। मतलब कयामत का समय जल्द आने वाला है।

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क्या है डूम्सडे क्लॉक?

दरअसल, परमाणु वैज्ञानिकों की संस्थान बीएएस ने विश्व पर परमाणु युद्ध ( Nuclear War ) के खतरे की संभावना का संकेत देने वाली घड़ी यानि डूम्सडे क्लॉक की सूई को आधी रात 12 बजने से महज 100 सेकेंड पीछे तक ला दिया है। इस घड़ी में 12 बजने का मतलब होता है कि दुनिया खत्म। सूई के 73 साल के इतिहास में ये पहली बार हुआ है कि इसमें 12 बजने में महज 100 सेकेंड का समय रखा गया है। इससे पहले अमेरिका और रूस के शीतयुद्ध के दौरान इसकी सुई को आधी रात 12 बजने से लगभग 2 मिनट पीछे रखा गया था। इस घड़ी की सुईयों का किस जगह पर रखना है इसका फैसला परमाणु वैज्ञानिकों की 15 लोगों की टीम करती हैं, जिसमें 13 नोबेल पुरस्कार वैज्ञानिक भी शामिल हैं। इस घड़ी के मुताबिक, जितना कम समय इसमें आधी रात के 12 बजने में रहेगा दुनिया उतनी सुरक्षित रहेगी। लेकिन मौजूदा स्थिति देखकर ऐसा नहीं लगता कि दुनिया सुरक्षित है।

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कैसे होता ये सब तय? खत्म हो जाएगी दुनिया?

बीएएस संस्था ने इस कयामत की घड़ी को तैयार किया है, जो कि एक गैर-लाभकारी संगठन है और ये वैश्विक सुरक्षा मुद्दों पर बारीकी से पैनी नजर रखती है। साल 1945 में बीएएस की स्थापना शिकागों विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की थी, जिन्होंने पहले परमाणु हथियारों को विकसितद करने में मदद की थी। इन लोगों ने ही 2 साल बाद डूम्सडे क्लॉक को तैयार किया। संगठन की वेबसाइट के अनुसार ‘ये घड़ी मानवता के खतरों को जाहिर करने के लिए परमाणु विस्फोट (आधी रात) की कल्पना और शून्य की उलटी गिनती (काउंटडाउन) का इस्तेमाल करती है।’ साल 1947 में सबसे पहले इस कयामत की घड़ी को रात के 12 बजने से 7 मिनट पर सेट किया गया था। वहीं जब साल 1949 में रूस ने अपने पहले परमाणु बम RDS-1 का परीक्षण कियाी तो पूरी दुनिया में परमाणु हथियारों की होड़ शुरू हो गई और उस समय इस घड़ी में 12 बजने में 3 मिनट रखा गया था। वहीं इसके बाद 1953 में 2 मिनट का समय रखा गया था। लेकिन अब महज 100 सेकेंड का समय तय किया गया है, जो बताता है कि दुनिया बर्बादी के किस कगार पर खड़ी है।

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