उनका जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था। उन्होंने अपने परिवार का खर्चा चलाने के लिए बचपन में ही अखबार बेचना शुरू कर दिया था। वह जल्दी उठ कर अखबार बेचने निकल जाया करते और फिर आकर अपनी पढ़ाई पर ध्यान देते थे। गणित और विज्ञान उनके पसंदीदा विषय थे।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम का बचपन से सपना था कि वे फाइटर प्लेन उड़ाने वाले पायलट बने। उन्होंने इसके लिए इंडियन एयर फोर्स का एग्जाम भी दिया था जिसमें वह नवें स्थान पर रहे हालांकि IAF ने केवल आठ उम्मीदवारों को ही चुना। अतः वह पायलट बनते-बनते रह गए। इसके बाद उनके मन में सन्यांस लेने की इच्छा जाग उठी परन्तु उन्होंने अपने शुभचिंतकों के समझाने पर आगे के कॅरियर पर ध्यान देना शुरु किया।
उन्होंने इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और DRDO में एक वैज्ञानिक के रूप में काम करने लगे। वहां उन्होंने विक्रम साराभाई के साथ भी काम किया और भारतीय सेना के लिए एक छोटा होवरक्राफ्ट तथा हेलीकॉप्टर तैयार किए।
1969 में उनका ट्रांसफर ISRO में कर दिया गया जहां उन्होंने भारत के पहले स्वदेशी डिजाइन किए गए उपग्रह SLV-III के परियोजना निदेशक का कार्य किया। इसके बाद उन्होंने PSLV प्रोजेक्ट पर काम किया और सफलतापूर्वक भारत के पहले ध्रुवीय प्रक्षेपण यान को विकसित कर उसे लॉन्च भी किया।
डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने 1980 के दशक में Integrated Guided Missile Development Program (IGMDP) प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया और जल्दी ही भारत के पास अग्नि, पृथ्वी, नाग और त्रिशूल जैसी मिसाइलें बनाने की क्षमता आ गई। इसी कारण उन्हें “भारत का मिसाइल मैन” भी कहा जाता है।
नब्बे के दशक में उन्होंने अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान भारत के परमाणु परीक्षणों की जिम्मेदारी निभाई और भारत पूर्ण विकसित परमाणु राज्य घोषित हो सका।
उन्हें 25 जुलाई 2002 को भारत का ग्यारहवां राष्ट्रपति बनाया गया। राष्ट्रपति के रूप में उन्होंने भारत तथा जनता के हितार्थ कई निर्णय लिए। उन्हें उनके अभूतपूर्व प्रतिभा तथा विज्ञान में अविस्मरणीय योगदान के चलते कई सम्मानों से नवाजा गया। दुनिया भर की टॉप 40 यूनिवर्सिटीज में उन्हें मानद डॉक्टरेट की उपाधि दी गई। 2015 में संयुक्त राष्ट्र ने डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के जन्मदिन को “विश्व छात्र दिवस” के रूप में मान्यता दी।