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इस तरह अंतरिक्ष में जमा हो गया कचरा, नए सैटेलाइट में बढ़ा खतरा, वैज्ञानिक ने लागू किए नए नियम

Highlights
-अंतरिक्ष में कचरा ((Space debris) बढ़ता ही जा रहा है, पुराने सैटेलाइट (Satallite) दूसरे कचरों से पृथ्वी की निचली कक्षा भरती जा रही है
-इससे नए सैटेलाइट के प्रक्षेपण में भी खतरा बढ़ने लगा है
-अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के जरिए सलाह दी है सैटेलाइट ‘ऑरबिटल यूज फीस’ का नियम लागू करने से अंतरिक्ष में बढ़ते कचरे को कम किया जा सकता है

May 29, 2020 / 02:29 pm

Ruchi Sharma

इस तरह अंतरिक्ष में जमा हो गया कचरा, नए सैटेलाइट में बढ़ा खतरा, वैज्ञानिक ने लागू किए नए निमय

इस तरह अंतरिक्ष में जमा हो गया कचरा, नए सैटेलाइट में बढ़ा खतरा, वैज्ञानिक ने लागू किए नए निमय

नई दिल्ली. कोरोना वायरस के बीच इस समय अंतरिक्ष में कचरे का जो घनत्व देखा जा रहा है। अंतरिक्ष में कचरा ((Space debris) बढ़ता ही जा रहा है। पुराने सैटेलाइट (Satallite) दूसरे कचरों से पृथ्वी की निचली कक्षा भरती जा रही है। इससे नए सैटेलाइट के प्रक्षेपण में भी खतरा बढ़ने लगा है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी ऑफ कोलोराडो के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन के जरिए सलाह दी है सैटेलाइट ‘ऑरबिटल यूज फीस’ का नियम लागू करने से अंतरिक्ष में बढ़ते कचरे को कम किया जा सकता है।
एेसे कम होगा कचरा

अमेरिका की कॉपरेटिव इंस्टीट्यूट फॉर रिसर्च इन इनवॉयरनमेंटल साइंसेज (सीआईआरईएस) के अर्थशास्त्री मैथ्यू बर्गीज ने बताया है कि प्रति सैटेलाइट एक करोड़ 76 लाख रुपये की राशि ली जाए तो वर्ष 2040 तक उपग्रह की दुनिया पूरी तरह बदल जाएगी। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित शोध में वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका सीधा असर ये होगा कि उपग्रह के टकराने के मामले कम होंगे और अंतरिक्ष में कचरा कम होगा।
भविष्य में बढ़ेगा और कचरा

विशेषज्ञों के अनुसार 1950 के दशक में अंतरिक्ष युग की जब शुरुआत हुई तब से लेकर अब तक हजारों की संख्या में उपग्रह, रॉकेट और अन्य चीजें छोड़ी गई हैं। एक अनुमान के अनुसार अभी करीब दो हजार उपग्रह पृथ्वी की निचली कक्षा में चक्कर लगा रहे हैं जबकि तीन हजार उपग्रह खराब पड़े हैं। दस सेंटीमीटर से बड़े 34 हजार टुकड़े अंतरिक्ष में हैं।
कचरा हटाना समाधान नहीं

इस शोध के मुताबिक कचरा पकड़ने या पुराने सैटेलाइट को कक्षा से ही हटा देने से समस्या का समाधान नहीं होगा। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि यह ऑस्बिटल फीस लंबे समय में अंतरिक्ष उद्योग का मूल्य बढ़ाने में मददगार होगी। अर्थ शास्त्री मैथ्यू बुर्गेस और उनके साथियों ने अपने शोधपत्र में यह कहा है। हाल ही में प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस में यह शोधपत्र प्रकाशित हुआ है।
क्या समाधान सुझाए गए हैं अब तक

शोध के प्रमुख लेखक और मिडिलबरी कॉलेज में अर्थशास्त्र के एसिसटेंट प्रोफेसर अखिल राव का कहना है कि अभी तक के प्रस्तावित समाधानों में मुख्यतया तकनीकी और प्रबंधकीय समाधान सुझाए गए हैं। तकनीकी सुझावों में अंतरिक्ष के कचरे को नेट्स, बर्छी (हार्पून) या फिर लेसर से हटाने के तरीके शामिल हैं। वहीं प्रबंधकीय समाधान में सैटेलाइट की उम्र खत्म होने के बाद उन्हें उनकी कक्षा से हटाने की बात की जाती है।

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