आज़ादी के बाद का वो पहला रंगीन वीडियो जिसमें दिखे बंटवारे से लेकर सत्ता तक के सारे रंग
यहां आकर उसका जीवन और कठिन हो गया लेकिन उसे इस बात की खुशी थी अब उसपर कोई हाथ उठाने वाला नहीं है। विकी अपना पेट भरने के लिए कूड़ा इकट्ठा करता, ट्रेन में पानी बेचता, खुले आसमान के नीचे सोता। कुछ दिन विकी ने ढाबे में भी काम किया। यहां उससे बिना रुके काम कराया जाता था और खाने के नाम पर लोगों की जूठन मिलती थी। एक बार संक्रमण से विकी बहुत बीमार हो गया तो वह डॉक्टर के पास गया। उसकी हालत देखकर डॉक्टर ने उसे एक NGO से संपर्क करने को कहा। बस यहीं से विकी की किस्मत ने नया मोड़ लिया।
इस NGO के संपर्क में आने के बाद विकी की ज़िंदगी हर दिन बेहतर होने लगी। यहां उसे तीन वक्त की रोटी मिलती, पहनने के लिए कपड़े मिलते और सबसे ज़रूरी उसे एक छत मिली। पढ़ाई के दौरान विकी की मुलाकात एक ब्रिटिश फोटोग्राफर से हुई। विकी उसके काम से बेहद प्रभावित हुए। वो भी तस्वीरों के जरिए सड़कों के किनारे की ज़िंदगी दिखाना चाहते थे।
जब विकी 18 साल के हुए तब एनजीओ ने उन्हें 500 रुपए का एक कैमरा दिया। एक स्थानीय फोटोग्राफर के साथ उन्होंने फोटोग्राफी में इंटर्नशिप की। इस इंटर्नशिप के दौरान उन्होंने अपने द्वारा खींची गई तस्वीरों की प्रदर्शनी लगाई जिसका नाम ‘स्ट्रीट ड्रीम्स’ था। आज वो इतने सफल फोटोग्राफर हैं कि उनके काम के लिए उन्हें न्यूयॉर्क, लंदन, दक्षिण अफ्रीका और यहां तक कि सैन फ्रांसिस्को बुलाया गया। इतना ही नहीं फोर्ब्स के अंतराष्ट्रीय मंच पर उन्हें कई सफल लोगों के साथ बैठकर सम्मानित किया जा रहा है। विकी कहते हैं -” मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि मैं अपने भाग्य को, इस हद तक बदल पाऊंगा।” विकी जितना अपनी किस्मत को श्रेय देते हैं उतना ही श्रेय वे अपने दृढ़ निश्चय को देते हैं जिसकी वजह से आज वे अपने समय के इतने करीब पहुंच पाए हैं।
Story Credit- Humans of Bombay