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सुभाष चंद्र बोस: नेता जी ने देश की आजादी के लिए ठुकरा दिया था IPS का पद

साल 1920 में बोस ने भारतीय सिविल सेवा की परीक्षा पास की थी
बोस ने तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूंगा’ की बदौलत लोगों में आजादी की चाह जगाई

नई दिल्लीJan 22, 2020 / 10:59 am

Piyush Jayjan

Subhas Chandra Bose

नई दिल्ली। तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा..! इस नारे से देश का हर नागरिक बहुत अच्छी तरह वाक़िफ होगा। इस नारे के जरिए देश के लोगों में आजादी की चाह जगाने वाले शख्स और महान क्रांतिकारी सुभाष चंद्र बोस ( Subhas Chandra Bose ) का जन्म 23 जनवरी 1897 को उड़ीसा ( Odisha ) के कटक ( Cuttack ) शहर में हुआ।

सुभाष के पिता कटक शहर के जाने-माने वकील थे। बोस को जलियांवाला बाग कांड ( Jallianwala Bagh Massacre ) ने इतना प्रभावित किया कि वह आजादी की लड़ाई में कूद पड़े। कॉलेज के दिनों में एक अंग्रेजी शिक्षक के भारतीयों को लेकर की गई आपत्तिजनक टिप्पणी पर उन्होंने विरोध किया तो उन्हें कॉलेज से निकाल दिया गया था। लेकिन नेताजी बचपन से अलहदा किस्म के इंसान थे।

आज़ादी की लड़ाई में शामिल होने के लिए उन्होंने भारतीय सिविल सेवा की नौकरी ठुकरा दी। उन्होंने लंदन से आईसीएस की परीक्षा पास की। हालांकि उनके इतनी बड़ी नौकरी को ठुकराने पर उनके पिता काफी नाराज़ हुए। दरअसल उनके पिताजी को सुभाष के इस फैसले की वजह ही समझ में नहीं आ रही थी। इस बात की तस्दीक उनके बड़े भाई शरतचंद्र बोस के लिखे गए पत्र से भी होती है जिसमें उन्होंने सुभाष को पिता की नाराज़गी के बारे में बताया।

इस पत्र के जवाब में उन्होंने अपने बड़े भाई को लिखा, ‘इंग्लैंड के राजा के लिए वफादारी की कसम खाना मेरे लिए मुश्किल था। जबकि मैं खुद को देश सेवा में लगाना चाहता था। मैं देश के लिए कठिनाइयां झेलने को तैयार हूं, यहां तक कि अभाव, गरीबी और मां-पिता की नाखुशी भी। सुभाष का पत्र पढ़कर शरतचंद्र भी अच्छे से समझ गए थे कि उन्हें पर किसी तरह का दबाव डालना बेकार है।

इसके बावजूद भी उन्होंने सुभाष को एक और खत लिखा और उसमें बताया कि पिता रात-रात भर सोते नहीं हैं। तुम्हारे भारत लौटते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया जाएगा। वे ब्रिटिश राज के निशाने पर हैं। ऐसे में भारत सरकार उन्हें स्वतंत्र नहीं रहने देगी।’ सुभाष चंद्र बोस के मित्र दिलीप राय ने जब यह पढ़ा तो वह बोले, ‘सुभाष, अब तुम क्या करोगे? अभी भी वक्त है अगर तुम चाहो तो अपना इस्तीफा वापस ले सकते हो?

यह सुनकर सुभाष गुस्से से तिलमिलाकर बड़े ही बेबाक अंदाज में कहा कि तुम ऐसा सोच भी कैसे सकते हो?’ दिलीप राय ने बेहद शांत स्वर में कहा, ‘इसलिए, क्योंकि तुम्हारे पिता अभी बीमार हैं। सुभाष बोले, ‘मैं जानता हूं, पर अगर हम अपने परिवार की प्रसन्नता के आधार पर अपने आदर्श निर्धारित करते हैं तो क्या ऐसे आदर्श वास्तव में आदर्श होंगे?

सुभाष चंद्र बोस की यह बात सुनकर दिलीप राय दंग रह गए। उनके मुंह से सिर्फ यही निकल पाया, ‘धन्य हैं तुम्हारे माता-पिता, जिन्होंने ऐसे जुनूनी बेटे को जन्म दिया है जो पिता की खुशी से भी ऊंचा स्थान अपनी मातृभूमि की सेवा को देता है। साल 1943 में नेताजी जब बर्लिन ( Berlin ) में थे, उन्होंने वहां आज़ाद हिंद रेडियो और फ्री इंडिया सेंटर की स्थापना की। सुभाष चंद्र बोस ( Subhas Chandra Bose ) ने आजाद हिंद फौज की स्थापना की।

 

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