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सच्चे देशभक्त थे ये पिता-पुत्र, अंग्रेजों ने कहा दो हमारा साथ, किया इंकार तो तोप के मुंह में बांधकर दिया था उड़ा

locationनई दिल्लीPublished: Feb 21, 2019 02:57:24 pm

Submitted by:

Priya Singh

गोंड राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह के वीरता के किस्से हमेशा चर्चाओं में रहे हैं
अंग्रेजों ने छल से किया था गिरफ्तर
अंग्रेजों ने पिता-पुत्र को माफीनामा देने पर सजा माफ कर देने का भरोसा दिलाया, लेकिन वे नहीं हुए राजी

jabalpur will create inspiration center for shankar shah and his son

नई दिल्ली। मध्य प्रदेश के महाकौशल के गोंड राजा शंकर शाह और उनके पुत्र रघुनाथ शाह के वीरता के किस्से हमेशा चर्चाओं में रहे हैं, अब राज्य सरकार ने पिता-पुत्र के बलिदान को जीवंत करने की मुहिम छेड़ी है। जिस कारागार में पिता-पुत्र रहे, उस स्थल को ‘प्रेरणा केंद्र’ बनाया जाएगा, ताकि उनके बलिदान की यादों को चिरस्थाई रखने के साथ-साथ नई पीढ़ी देश के नायकों से परिचित हो सके। शंकर शाह-रघुनाथ शाह को आजादी की लड़ाई के दौरान जबलपुर के एल्गिन अस्पताल के करीब स्थित एक भवन में कैद करके रखा गया था। यह कारागार अब वन विभाग का दफ्तर बन चुका था, सरकारी फाइलों से भरा पड़ा था। राज्य के जनजातीय कल्याण मंत्री ओमकार सिंह मरकाम को जब गौंड नरेशों के कारावास स्थल की जानकारी हुई तो उन्होंने स्वयं मौका मुआयना किया तो हालात देखकर विचलित हो गए।

मरकाम ने एक मीडिया एजेंसी से कहा कि गौंड नरेशों को जिस स्थान पर कैद करके रखा गया हो, उसकी दुर्दशा उनसे देखी नहीं गई। लिहाजा उसी दिन तय कर लिया था कि इसे प्रेरणा केंद्र के तौर पर विकसित किया जाएगा। उसके लिए पहल भी तेज हो गई है। मंत्री मरकाम ने स्वयं वन विभाग के कार्यालय में पहुंचकर रखे सामान को उठाकर बाहर रखा था और झांडू लगाई थी। उसके बाद इस स्थल की साफ -सफाई का दौर चला।

जनजातीय कल्याण विभाग के सूत्रों का कहना है कि शंकर शाह-रघुनाथ शाह के कारावास स्थल को ‘प्रेरणा केंद्र’ के तौर पर विकसित करने की योजना को अंतिम रूप दिया जा चुका है, लगभग पांच करोड़ की लागत से यह केंद्र बनेगा। इस केंद्र के जरिए गौंड राजाओं की शहादत को जीवंत किया जाएगा। मरकाम ने शंकर शाह -रघुनाथ शाह की शहदात को याद करते हुए कहते है कि आजादी की लड़ाई में ऐसे उदाहरण विरले ही हैं, जब पिता-पुत्र को एक साथ मौत की सजा दी गई हो। पिता-पुत्र को सजा सुनाने के बाद एक ही कक्ष में रखा गया, कोई कल्पना कर सकता है कि उनकी मनोदशा क्या रही होगी, अंग्रेजों ने उनसे माफीनामा देने को कहा मगर वे उसके लिए तैयार नहीं हुए। बाद में दोनों को तोप के जरिए मौत की सजा दी गई।

गौरतलब है कि शंकर शाह-रघुनाथ शाह ने आजादी की पहली लड़ाई 1857 में अहम् भूमिका निभाई थी। उन्होंने जनता से अंग्रेजों के खिलाफ उठ खड़े होने का आह्वान किया तो पूरे क्षेत्र के लोग उनके साथ आ गए। हालात अंग्रेजों के नियंत्रण से बाहर हो चले थे। उपलब्ध जानकारी के अनुसार, जबलपुर में तैनात अंग्रेजों के सुरक्षा बल का कर्नल क्लार्क बड़ा क्रूर था। उसके रवैए से छोटे राजा व रियासतदार परेशान थे। इन स्थितियों में राजा शंकर शाह ने जनता और जमींदारों को साथ मिलकर क्लार्क के खिलाफ बिगुल फूंक दिया।

जब हालात बिगड़े तो क्लार्क ने छल करके अपने गुप्तचरों को साधु बनाकर भेजा, क्लार्क जानता था कि, शंकर शाह धार्मिक प्रवृति के है। वैसा ही हुआ शंकर शाह ने गुप्तचरों को साधु मानकर उनका स्वागत सत्कार किया, साथ ही कथित साधुओं द्वारा आजादी की लड़ाई में हिस्सेदारी का आह्वान कर शंकर शाह की तैयारियों का पता कर लिया। जिससे शंकर शाह को नुकसान हुआ। जनरल क्लार्क अपनी योजना में कामयाब रहा और शंकर शाह व उनके पुत्र रघुनाथ शाह को पकड़ लिया गया। इन्हें जबलपुर के कारावास में रखा गया। अंग्रेजों ने पिता-पुत्र को माफीनामा देने पर सजा माफ कर देने का भरोसा दिलाया, लेकिन वे उसके लिए राजी नहीं हुए। अंतत: दोनों को तोप के मुंह से बांधकर उड़ा दिया गया। अब उस कारावास को ‘प्रेरणा केंद्र’ बनाने की कवायद शुरू हुई है।

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