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राजा मोहन राय ने राष्ट्र और समाज की कुरीतियों को खत्म करने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी भी छोड़ दी थी। राजा राम मोहन राय का सारा जीवन मुख्य तौर पर महिलाओं को उनका हक दिलाने के लिए संघर्ष में बीता था। राजा राम मोहन राय ने स्वयं की भाभी को सती होते हुए देखा था जिससे महिलाओं के दर्द का एहसास उन्हे इन कुरीतियों को खत्म करने के लिए जागरूक करता रहा।
उन्होने सती प्रथा को खत्म करने के लिए गवर्नर जनरल लार्ड विलियम बेंटिक की सहायता से इसके खिलाफ कानून भी बनवाया था। राजा राम मोहन राय मूर्ति पूजा के भी विरोधी थे। दिल्ली के तत्कालीन मुगल शासक अकबर द्वितीय ने उन्हे राजा की उपाधि दी थी।
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भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के अलावा उन्होने पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अहम योगदान दिया था और दोनों ही क्षेत्रों को गति प्रदान की थी। ब्रह समाज के आंदोलन की वजह से उन्होने सती प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ आवाज़ उठाई थी।