तमिलनाडु के ये 2 गांव नही मनाते दीवाली, जानें इसके पीछे की बड़ी वजह
- साल 1994 में तमिलनाडु के इस गांव में बर्ड सेंचुरी खुली थी
- कूतनकुलम गांव के लोगों ने तो दिवाली पर पटाखे ना चलाने के साथ-साथ लाउड स्पीकर ना चलाने का भी फैसला ले रखा है

नई दिल्ली। दीवाली भारत के लोगों का सबसे बड़ा पर्व है। जिसे पूरा देश पूरे धूमधाम से मनाता है। और इस त्यौहार पर लोग रंगबिरंगे दिए जलाकार रोशनी से भर देते है। इतना ही नही अपनी खुशी को लोग फटाके जलाकर भी सेलिब्रेट करते है। लेकिन कुछ क्षणों की खुशी के लिए फोड़े गए फटाकों से स्वच्छ वातावरण भी पूरी तरह से प्रदूषित हो जाता है। जिससे ना केवल पर्यवरण को नुकसान पहुंचता है बल्कि इंसान से लेकर पशु पक्षी भी इसकी चपेट में आ जाते है। भले ही हमारी सरकार ने पटाखों को जलाने पर बैन लगा दिया है पर लोगों के समझने में काफी समय लग सकता है लेकिन हमारे भारत देश में एक जगह ऐसी भी है जो प्रदूषण के बारे में ज्यादा ही सक्रिय है। बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए इस गांव के लोग कई सालों से दिवाली नही मना रहे है। जी हां यह जीता जागता सदेंशप्रद उदा बना है तमिलनाडु के ये 2 गांव।
जब पूरा भारत देश जगमग जलते दिये, ढेर सारी मिठाइयां और पटाखों के साथ इस उत्सव को मनाता है। तब तमिलनाडु के 2 गांव दिवाली के दिन मात्र दिए जलाकर ही इस उत्सव को मनाते है। इस गांव के लोगों ने करीब 14 सालों से दीवाली के अवसर पर पटाखे नहीं जलाए। जिसका सबसे बड़ा कारण है पक्षीयों की सुरक्षा…
200 एकड़ की जमीन में फैले वेल्लोड़ अभ्यारण्य में अक्टूबर से जनवरी के बीच कई प्रजातियों के पक्षी दूर देश से अपने देश आते हैं।जो ये प्रवासी पक्षी ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड से उड़कर यहां पर आते है। दीवाली के दौरान पटाखों की अवाज ये पक्षी काफी डर जाते है। जिन्हें सुरक्षित रखने के लिये यहां के गांव के लोग दीवाली पर पटाखे नहीं जलाए जाते हैं पिछले दो सालों से बच्चे दीवाली पर सिर्फ फुलझड़ी जलाकर खुश रह रहे हैं।
तिरूनलवेली का कूतनकुलम गांव
इस गांव के लोगों का पक्षियों से बेहद लगाव है। गांववालों का मानना है कि दूर देशों से आये इन पक्षीयों के आने से उनकी फ़सल अच्छी होती है.और पटाखों की तेज़ आवाज़ से पक्षी काफी डर जाते है। इसलिए ग्रामीणों ने कई दशक से दीवाली पर पटाखों का इस्तेमाल करना बंद कर दिया है।
तामिलनाडू के इन गांव के द्वारा मिली सीख हर किसी के लिये प्रेरणादायक है जो अपने स्वार्थ की भावना से नही बल्कि प्रकृति के बिगड़ते संतुलन के बनाये रखने के लिये अपनी खुशीयों को न्यौछावर कर रहे है।
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