Lockdown 2.0 : गरीबों को खाना खिलाने के लिए दो मुस्लिम भाइयों ने 25 लाख में बेच दी जमीन, बताया- मुश्किलों से बीता था बचपन
Highlights
- लॉकडाउन (Coronavirus Lockdown) का सबसे ज्यादा असर उन मजदूरों पर पड़ा है
- कोलार के रहने वाले भाई तजामुल और मुजम्मिल पाशा ने खाने की कमी से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए अपनी जमीन तक बेच दी
-इस बिक्री से उन्हें कठिन समय में 25 लाख रुपए मिले

नई दिल्ली. कोरोनावायरस (Coronavirus Lockdown) को रोकने के लिए देश में 21 दिन के लॉकडाउन (Lockdown) को 19 दिनों के लिए बढ़ाकर 3 मई तक लॉकडाउन (Lockdown 2.0) कर दिया है । इस लॉकडाउन का सबसे ज्यादा असर उन मजदूरों पर पड़ा है, जो बेहतर जिंदगी की तलाश में अपने गांवों से बड़े शहरों की ओर गए थे। पर, लॉकडाउन के कारण इन मजदूरों के लिए खुद और परिवार के खर्च निकाल पाना मुश्किल हो गया। जब सब बंद हो गया, तो ये मजदूर भूख-प्यास की परवाह किए बगैर पैदल ही अपने-अपने गांवों की ओर निकल पड़े। इस सफर में कई लोगों को जान तक गंवानी पड़ गई। इसी स्थिति को देखते हुए कोलार के रहने वाले दो मुस्लिम भाई बेबस लोगों के लिए सहारा बन कर आगे आए हैं।
गरीबों के लिए बेच दी जमीन
किसी ने सही कहा है कि जब परोपकार की भावना उमड़ती है तो धर्म-जात नहीं देखती। एेसा ही इन मुस्लिम भाइयों ने किया। कोलार के रहने वाले भाई तजामुल और मुजम्मिल पाशा ने खाने की कमी से जूझ रहे लोगों की मदद के लिए अपनी जमीन तक बेच दी। इस बिक्री से उन्हें कठिन समय में 25 लाख रुपए मिले, जिसे उन्होंने अपने भाइयों के लिए नहीं, बल्कि उन लोगों की भलाई में लगाया है, जिन्हें लॉकडाउन में मदद की सबसे ज्यादा जरूरत है।
2800 परिवारों के 12 हजार लोगों पहुंचा चुके हैं मदद
दोनों भाई घर बेचकर जुटाए गए पैसों से जरूरतमंदों के लिए राशन और सब्जियां खरीद रहे हैं। वे अब तक कोलार में 2800 परिवारों के 12 हजार लोगों को मदद पहुंचा चुके हैं। दोनों ने 25 लाख जुटाने के बाद सबसे पहले दोस्तों के जरिए थोक में राशन और सब्जियां जुटाना शुरू किया और अपने घरों में इकट्ठा करने लगे। इसके बाद दोनों ने राशन पैकेट बनाए, जिसमें 10 किलो चावल, 1 किलो आटा, 1 किलो गेहूं, 1 किलो चीनी, तेल, चाय पत्ती, मसाले, हैंड सैनिटाइजर और फेस मास्क रखे गए।
पुलिस की भी मिली मदद
दोनों भाई यह राशन पैकेट लोगों के घर पहुंचाने तक ही नहीं रुके। उन्होंने अपने घर के पास एक टेंट लगाया, जिसमें कम्युनिटी किचन शुरू किया गया, ताकि जो घर में खाना नहीं बना सकते, उन्हें भी भूखा न रहना पड़े। खास बात यह है कि तजामुल और मुजम्मिल की इस पहल को पुलिस की भी मदद मिली। पुलिस ने उनके साथियों को जरूरी खरीदारी के लिए पास जारी किए।
एेसी थी भाइयों की कहानी
तजामुल का कहना है कि जब वह आठ साल और उसका भाई मुजम्मिल 5 साल का था, तभी उनके माता-पिता गुजर गए। इसके बाद वे दादी के साथ कोलार आ गए थे। पैसे की कमी की वजह से उन्हें चौथी क्लास में ही पढ़ाई छोड़नी पड़ी। तजामुल के मुताबिक 'इस दौर में एक दयालु व्यक्ति ने उन्हें मस्जिद के पास घर दे दिया। हिंदू, मुस्लिम, एक सिख परिवार व कई अन्य लोग उन दिनों हमें खाना देते थे। धर्म और जाति हमारे लिए कभी बाधा नहीं बना। हमें मानवता साथ लाई और अब भी हम मानवता के लिए काम कर रहे हैं। उन दिनों ने हमें खाने का महत्व महसूस कराया था।'
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