script‘लेडी डेथ’ के नाम से मशहूर महिला से हिटलर की सेना भी खाती थी खौफ, सैकड़ों को उतारा था मौत के घाट | Lyudmila Pavlichenko Known as 'Lady Death' Sniper, Hitler Affraid | Patrika News

‘लेडी डेथ’ के नाम से मशहूर महिला से हिटलर की सेना भी खाती थी खौफ, सैकड़ों को उतारा था मौत के घाट

locationनई दिल्लीPublished: Feb 06, 2020 09:13:45 am

Submitted by:

Soma Roy

Famous Lady Sniper : महज 25 साल की उम्र में करीब 309 लोगों को उतारा था मौत के घाट
अपनी सटीक निशानेबाजी के चलते दुनिया के बेहतरीन स्नापर्स में हैं शामिल

sniper1.jpg

Famous Lady Snipper

नई दिल्ली। बंदूक चलाने में वैसे तो लड़कों को ही एक्सपर्ट समझा जाता है, लेकिन इतिहास के पन्नों में ल्यूडमिला पवलिचेंको का नाम पुरुषों को भी टक्कर देता है। वो पहली ऐसी महिला शूटर (Lady Sniper) थीं जिनसे जर्मन तानाशाह हिटलर (Hitler) और उसकी नाजी सेना भी खौफ खाती थी। ल्यूडमिला (Lyudmila Pavlichenko) को उनके खतरनाक अंदाज के चलते ‘लेडी डेथ’ के नाम से भी जाना जाता था।
इंटरनेट पर टीवी एक्ट्रेस की शख्स से हुई दोस्ती, मिला धोखा तो पोस्टर छपवाकर ब्वॉयफ्रेंड को कहा ‘शैतान’

ल्यूडमिला ने महज 25 साल की उम्र में अपनी स्नाइपर (sniper shooting) राइफल से करीब 309 लोगों को मार गिराया था, जिनमें से अधिकतर हिटलर की फौज के सिपाही थे। 12 जुलाई 1916 को यूक्रेन के एक गांव में जन्मीं ल्यूडमिला ने महज 14 साल की उम्र में ही हथियार थाम लिया था। हेनरी साकैडा की किताब ‘हीरोइन्स ऑफ द सोवियत यूनियन’ के मुताबिक ल्यूडमिला पहले हथियारों की फैक्ट्री में काम करती थीं, लेकिन बाद में एक लड़के की चुनौती की वजह से वो स्नाइपर (निशानेबाज) बन गईं।
pevlicko1.jpg
ल्यूडमिला द्वितीय विश्व युद्ध (second world war) के समय सोवियत संघ की रेड आर्मी में एक बेहतरीन स्नाइपर थीं। वो उस वक्त आर्मी का हिस्सा थीं जब महिलाओं को सेना में शामिल नहीं किया जाता था। मगर उन्होंने अपनी काबलियत से सारे नियमों को बदल दिया था। शूटिंग के क्षेत्र में कदम रखने के बारे में उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि उनके पड़ोस में रहने वाला एक लड़का शूटिंग सीखता था और वो लड़कियों को कमजोर समझता था। उसके मुताकि लड़कियां शूटिंग नहीं कर सकती थी। उसकी बात को गलत साबित करने के लिए उन्होंने स्नापर बनने का फैसला लिया था। ल्यूडमिला ने अपनी काबिलित से सबको हैरान कर दिया था। हालांकि 1942 में युद्ध के दौरान वह बुरी तरह घायल हो गईं थी। मगर चोट से उबरने के बाद उन्होंने रेड आर्मी के दूसरे निशानेबाजों को ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया और फिर बाद में वह रेड आर्मी की प्रवक्ता भी बनीं।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो