दरअसल हम बात कर रहे हैं एक उच्च शिक्षित प्रोफेसर की, जो कश्मीर यूनिवर्सिटी में सोशियोलॉजी का प्रोफेसर था। 4 मई को उसने यहां आखिरी लैक्चर दिया, क्योंकि इसके बाद वह हैदराबाद यूनीवर्सिटी जाने वाला था। हैदराबाद यूनिसवर्सिटी में प्रोफेसर बनने के लिए हुए टेस्ट में मोहम्मद रफी बट ने टॉप किया था। लेकिन अफसोस रफी की मती मारी गई, जिससे वह अपना करियर चुनने के बजाए हिजबुल को चुन लिया। शोपियां में 6 मई की सुबह हमारे जवानों द्वारा घेरे जाने के बाद रफी ने अपने पिता के पास कॉल किया और कहा कि ‘मैं यहां फंस गया हूं अब्बा, मुझे मेरी गलतियों के लिए माफ करना। अब मैं अल्लाह से मिलने जा रहा हूं’।
बस फिर क्या था, जवानों ने शुरु कर दी धड़ाधड़ा फायरिंग। जिसमें रफी के साथ-साथ उसके 4 और हिजबुल के साथी भून दिए गए। महज़ 36 घंटों के लिए आतंकी बने रफी को हमारे जवानों ने और ज़्यादा समय नहीं दिया और भून दिया। रिपोर्ट्स की मानें तो रफी का कॉल ट्रेस कर उसके पिता से संपर्क किया गया था। ताकि वे अपने बेटे को समझा सकें कि वह सरेंडर कर दे। लेकिन अपनी ही धुन में सवार पढ़े-लिखे जाहिल ने सरेंडर करने से मना कर दिया, लिहाज़ा भून दिया गया।