विष पीने के बाद महादेव का गला नीला पड़ जाने के कारण उन्हें नीलकंठ कहा गया। वैसे तो साल भर लोगों का यहां आना लगा ही रहता है, लेकिन शिवरात्रि के अवसर पर यहां भीड़ देखते ही बनती है।
मान्यताओं के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि शिव जी ने जैसे ही विष ग्रहण किया तुरंत माता पार्वती ने उनका गला दबा लिया, ताकि विष उनके पेट तक न पहुंच सकें। फलस्वरुप विष उनके गले तक ही रहा। विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था और उन्हें नीलकंठ का नाम दिया गया।
मंदिर जाने से पहले श्रद्धालु पास स्थित एक झरने में नहाकर खुद को शुद्ध करते हैं। नीलकंठ महादेव उत्तर भारत के मुख्य शिवमंदिरों में से एक है।
ऋषिकेश से नीलकंठ तक जाने के लिए वाहन या पैदल दोनों तरीकों का सहारा लिया जा सकता है। महाशिवरात्रि के अवसर पर यहां शिवभक्तों की इतनी भीड़ होती है कि पुलिस और स्वास्थ्य विभाग की टीमें तैनात करने की नौबत आ पड़ती है।