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भारत की वो खतरनाक राजकुमारी जो थी अंग्रेजों की जासूस, हिटलर भी खाता था उससे खौफ

एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि युद्ध खत्म होने के बाद वे अपनी जिंदगी भारत की आज़ादी की लड़ाई में लगा देंगी।

Jul 11, 2018 / 12:22 pm

Priya Singh

भारत की वो खतरनाक राजकुमारी जो थी अंग्रेजों की जासूस, हिटलर भी खाता था उससे खौफ

नई दिल्ली। ’10 महीनों तक उसे यातनायें दी गईं और हद से ज्यादा टॉर्चर किया गया, लेकिन पूछताछ करने वाली जर्मनी की खुफिया पुलिस गेस्टापो द्वारा उससे कोई राज नहीं उगलवाया जा सका।’ उनके बलिदान और साहस की गाथा युनाइटेड किंगडम और फ्रांस में लोगों की जुबान पर है। उनकी सेवाओं के लिए उन्हें युनाइटेड किंगडम एवं अन्य राष्ट्रमंडल देशों के सर्वोच्च नागरिक सम्मान जॉर्ज क्रॉस से सम्मानित किया गया। उनकी स्मृति में लंदन के गॉर्डन स्क्वेयर में स्मारक बनाया गया है, जो इंग्लैण्ड में किसी मुसलमान को समर्पित और किसी एशियाई महिला के सम्मान में इस तरह का पहला स्मारक है। हम बात कर रहे हैं नूर इनायत खान की जो मैसूर के राजा टीपू सुल्तान की वंशज थीं। उनके पिता टीपू सुल्तान के पड़पोते थे।

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गौरतलब है कि टीपू सुलतान सन 1799 में अंग्रेजों के हाथों मारे गए थे। नूर की मां का नाम ओरा बेकर था वो एक ब्रिटिश थीं, लेकिन अमेरिका में पली बढ़ीं थीं। नूर के पिता इनायत खान एक सूफी टीचर थे। 1914 में पैदा हुई नूर 6 साल की उम्र में परिवार के साथ पेरिस में रहने चली गईं। नूर की फ्रेंच लैंग्वेज बहुत अच्छी थी। 1939 में नूर की जातक कथाओं की किताब लंदन में छपी। उनकी ब्रिटिश जासूस बनने के पीछे की कहानी बड़ी लंबी है। नूर की साहसी जिंदगी पर एक फिल्म आ रही है ये फिल्म ब्रिटिश प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल की सीक्रेट आर्मी पर आधारित है। इस आर्मी में कई रियल लाइफ जासूस भी होंगे और राधिका इस फिल्म में नूर इनायत खान का रोल करती नजर आएंगी।

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नूर का पूरा नाम नूर-उन-निसा इनायत खान था। उनका जन्म 1 जनवरी 1914 को मॉस्को, रूस में हुआ था। प्रथम विश्व युद्ध के चलते नूर के परिवार को रूस छोड़ कर जाना पड़ा और ये परिवार इसके बाद फ्रांस में शिफ्ट हो गया था। उन्हें अपने पिता की तरह सूफी म्यूजिक से भी खासा लगाव था। अपने पिता की शांतिवाद की शिक्षा से प्रभावित नूर को नाज़ियों के अत्याचार से गहरा सदमा लगा। जब फ्रांस पर नाज़ी जर्मनी ने हमला किया तो उनके दिमाग में उसके खिलाफ वैचारिक उबाल आया। जिसके बाद उन्हें फ्रेंच सेक्शन के लिए नर्स के तौर पर जासूसी करने के लिए चुना गया। जून 1941 में उन्होंने आरएएफ बॉम्बर कमान के बॉम्बर प्रशिक्षण विद्यालय में आयोग के समक्ष ‘सशस्त्र बल अधिकारी’ के लिए आवेदन किया, जहां उन्हें सहायक अनुभाग अधिकारी के रूप में पदोन्नति प्राप्त हुई। waaf में एक इंटरव्यू के दौरान उन्होंने कहा था कि युद्ध खत्म होने के बाद वे अपनी जिंदगी भारत की आज़ादी की लड़ाई में लगा देंगी।

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द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उन्हें सीक्रेट एजेंट बनाकर नाजियों के क़ब्जे वाले फ्रांस में भेजा गया था। नूर विंस्टन चर्चिल के विश्वसनीय लोगों में से एक थीं। इसलिए उन्हें ये काम सौंपा गया था। नूर ने पेरिस में लगभग तीन महीने से तक सफलतापूर्वक अपना खुफिया नेटवर्क चलाया और नाजियों की अहम जानकारी ब्रिटेन तक पहुंचाई। लेकिन नवम्बर 1943 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और जर्मनी के फ़ॉर्जेम जेल भेजा गया। इस दौरान भी अधिकारियों ने उनसे खूब सख्ती से पूछताछ की, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं बताया। उन्हें दस महीने तक घोर यातनायें दी गईं, फिर भी उन्होंने किसी भी प्रकार की सूचना देने से मना कर दिया। नूर की जब गोली मारकर हत्या की गई, तो उनके होंठों पर शब्द था “लिबरेटे” जिसका मतलब है “स्वतंत्रता”।

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