दास छात्रों को किताब में छपे अक्षरों के बजाय प्लास्टिक के सामान जैसे बांस, लाठी, पत्थर, पानी, पत्ते, रेत के मदद से पढ़ाते हैं।
दास को इस शिक्षक दिवस पर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है।
नई दिल्ली। ओडिशा के खुटुलुगुड़ा परियोजना स्कूल के गुरू जी अपने छात्रों को किताब में छपे अक्षरों के बजाय प्लास्टिक के सामान जैसे बांस, लाठी, पत्थर, पानी, पत्ते, रेत की मदद से पढ़ाते हैं। जी हां ! आप बिल्कुल सही पढ़ रहे हैं। दरअसल, खुटुलुगुड़ा परियोजना स्कूल के प्रिंसिपल पवित्र मोहन दास का मानना है कि छात्रों को किताबी ज्ञान सिखाने से ज्यादा जरूरी उन्हें व्यावहारिक ज्ञान सिखाना है। पढ़ाई को मजेदार और आसान बनाने के इस प्रयासों के लिए दास को इस शिक्षक दिवस पर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है।
दास छात्रों को सिखाने के लिए किताबों से ज्यादा प्लास्टिक के डिब्बे, कागज, पत्ते, रेत जैसे सामानों का उपयोग करते हैं। बता दें मोहन अब तक ऐसे 200 से अधिक ट्रिक तैयार कर चुके हैं। उदाहरण के तौर पर वे संख्याओं को सिखाने के लिए माचिस और बांस के टुकड़ों का उपयोग करतें है व चित्र को समझाने के लिए थर्माकोल का उपयोग करते हैं। वे छात्रों को नदी के पास ले जाकर उनसे कंकड़ इकट्ठा करवाते हैं और उसकी मदद से उन्हें गिनती सिखाते हैं। उनके पढ़ाने के इस तकनीक से उनके छात्र हमेशा जोश से पढ़ाई करते हैं और रोज कुछ नया सीखते हैं।
मोहन का कहना है कि,“सीखना सरल और सार्थक होना चाहिए। आमतौर पर, बच्चे सीखने में रूचि रखते हैं लेकिन अगर हम उन्हें आसान और सरल भाषा में सिखाएं तो जल्दी और ज्यादा सीख सकते हैं।” बता दें दास ने अपने स्कूल में एक कंप्यूटर भी लगावाया है जिसकी मदद से वह बच्चों को नई-नई चीजें सिखा और दिखा सकें।
मोहन कहते हैं, “मेरा मुख्य उद्देश्य दूरदराज के गांव के छात्रों के शिक्षा स्तर को शहरी क्षेत्रों के छात्रों के बराबर लाना है।” बताते चलें कि पढ़ाई के अलावा दास ने स्कूल के भीतर एक छोटा सा तालाब भी बना रखा है, जिसमें विभिन्न प्रकार की मछलियां मौजूद हैं। इतना ही नहीं मोहन ने स्कूल के भीतर एक छोटी सी दुकान भी खोल रखी है। जहां बच्चे बिना पैसे दिए कोई भी सामान ले सकते हैं।