दरअसल, किसी भी तरह के डर या मांग के बदले में शरीर इसी तरह से प्रतिक्रिया करता है और व्यक्ति तनाव में आ जाता है। उसके नर्वस सिस्टम nervous system से तनाव वाले हार्मोन्स एड्रेनेलाइन और कॉर्टिसोल का स्राव होने लगता है, जो शरीर को इमरजेंसी एक्शन लेने के लिए उकसाता है।
‘अटेंशन डेफिसिट हाइपरएक्टिव सिंड्रोम’ से पीड़ित बच्चों की मदद करने वाली संस्था ‘मॉम्स बिलीफ’ से जुड़ीं क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट डॉ. मालविका समनानी कहती हैं, “विद्यार्थियों में परीक्षा के तनाव का संबंध एडीएचडी से हैं। यह संबंध सकारात्मक तो कतई नहीं है, बल्कि यह छत्तीस का आंकड़ा है। लिहाजा, इन दोनों का एक साथ होना खतरनाक हो सकता है।”
एडीएचडी से प्रभावित बच्चों का ध्यान बहुत जल्द भटक जाता है। इसके बावजूद उन्हें भी आम विद्यार्थियों की तरह हर चुनौती का सामना करना होता है। जैसे- अपनी चीजें सही जगह पर रखना, समय का ध्यान रखना और सवालों का का हल करना। यह सब इन बच्चों के जीवन को अधिक कठिन और चुनौतीपूर्ण बनाता है।
डॉ. सममानी आगे कहती हैं, “परीक्षा के दौरान तो विशेष तौर पर एडीएचडी से परेशान बच्चों का तनाव कई गुना बढ़ जाता है। इन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो सुनने में एकबारगी तो आम लगती हैं, लेकिन इनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं हैं।”
ये हैं समस्याएं :
– डाटा या कॉन्सेप्ट को पहचानने में कठिनाई
– विचार बनाने या व्यक्त करने में कठिनाई
– समय का ध्यान नहीं रहना
– एकाग्रता में कमी, ध्यान का भटकना
– निर्देर्शो का पालन नहीं कर पाना
– जल्दबाजी में गलतियां कर देना
परीक्षा के दौरान इन बच्चों का तनाव कम करने के लिए उनके माता-पिता उन्हें ट्यूशन या रेमेडी क्लास भेजकर उनके तनाव को कुछ कम जरूर कर सकते हैं। स्कूल भी यदि अपनी जिम्मेदारी समझकर कक्षाएं समाप्त होने के बाद एडीएचडी विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रोग्राम का आयोजन कर सकते हैं।
दसवीं की परीक्षा दे रहे मनन श्रीवास्तव की मां रेणु श्रीवास्तव कहती हैं, “मैं अपने बच्चे को यही समझाती हूं कि परीक्षाएं भी खेल की तरह ही हैं और तुम्हें इतना स्मार्ट होना है कि तुम इसे अच्छे से खेल सको। इसके बाद चिंता करने की जरूरत कतई नहीं है। परीक्षा के परिणाम पर ध्यान देने की बजाय परीक्षा की तैयारी में लगे रहो। यह कह देने भर से ही उसका मानसिक तनाव कम हो जाता है।”
उन्होंने कहा, “इससे बच्चे को भावनात्मक सहयोग मिलता है, वह आत्मविश्वास से लबरेज हो उठता है। इस दौरान मैं और परिवार के अन्य लोग टीवी देखने, गाना सुनने या कुछ ऐसा करने से परहेज करते हैं, जिससे उसका ध्यान बंटे। इस दौरान मैं गैजेट्स के इस्तेमाल पर नियंत्रण लगाती हूं। हालांकि, मेरा बेटा ऑनलाइन ट्यूटोरियल की मदद जरूर लेता है, ताकि उसे विषय को समझने में आसानी हो। वह ऑनलाइन ग्रुप स्टडी भी करता है।”
वहीं, डॉ. साभरवाल कहते हैं कि दबाव और तनाव के स्तर को कंट्रोल में रखने के लिए जरूरी है कि विद्यार्थी हर पौने घंटे की पढ़ाई के बाद दस- बीस मिनट तक का ब्रेक लें। इस ब्रेक के दौरान आउटडोर गेम्स खेले जा सकते हैं। खेल ऐसा माध्यम है, जो शरीर को ऑक्सीटॉनिक्स हार्मोन निकालने में सहायता करता है। पढ़ाई के दौरान होने वाले तनाव से मुक्ति के लिए ये हार्मोन शरीर और मस्तिष्क के लिए रिलैक्सेशन थेरेपी का काम करते हैं। साथ ही माता- पिता को चाहिए कि वे लगातार अपने बच्चे से बात करते रहें, ताकि उसके अंदर चल रही बातों का पता चल सके।