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Solar Eclipse 2020: सूर्य ग्रहण के लिए जिम्मेदार हैं राहु-केतु , जानें क्यों लगता है ग्रहण?

Published: Jun 21, 2020 04:04:08 pm

Submitted by:

Vivhav Shukla

Solar Eclipse 2020: शास्त्रों के अनुसार सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse )के पीछे राहु-केतु जिम्मेदार होते हैं। इन दो ग्रहों की सूर्य (Sun) और चंद्र (Moon) से दुश्मनी बताई जाती है।पढ़ें पूरी कथा..
 

Rahu and Ketu associated with Surya Grahan mean spiritually

Rahu and Ketu associated with Surya Grahan mean spiritually

Solar Eclipse 2020: इस साल का पहला सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse )समाप्त हो चुका है। आज सुबह 10 बजकर 15 मिनट में सूर्य ग्रहण (Solar Eclipse ) शुरू हुआ है जो दोपहर 3 बजकर 4 मिनट पर समाप्त हो गया। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब सूर्य और पृथ्वी के बीच चन्द्रमा आ जाता है तो इस वजह से सूर्यग्रहण लगता है। जबकि पृथ्वी और चन्द्रमा के बीच सूर्य के आ जाने से चंद्रग्रहण लगता है और ग्रहण के दौरान चांद और सूर्य का प्रकाश पृथ्वी पर नहीं पहुंच पाता है।

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सूर्य ग्रहण ग्रहण (Solar Eclipse )के दौरान कोई शुभ काम नहीं करना चाहिए। इन दौरान राहु और केतु का प्रकोप रहता है, जिससे बने काम भी बिगड़ जाते हैं। शास्त्रों के अनुसार सूर्य ग्रहण के पीछे राहु-केतु जिम्मेदार होते हैं। इन दो ग्रहों की सूर्य और चंद्र से दुश्मनी बताई जाती है।

जानिए क्या है कथा?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय पर दैत्यों ने तीनों लोक पर अपना अधिकार जमा लिया था। यहां तक की इंद्र से उनकी गद्दी भी छीन ली। इसके बाद देवताओं ने तीनों लोक को असुरों से बचाने के लिए भगवान विष्णु का आह्वान किया ।
इसके बाद भगवान विष्णु (Lord Vishnu) ने देवताओं को क्षीर सागर का मंथन करने की बात कही। मंथन शुरू हुआ। इस मंथन से तमाम चीजों के अलावा अमृत भी निकला।

अब अमृत के लिए देवता और दैत्यों में फिर युद्ध छिड़ गया। इसके बाद भगवान विष्णु ने मोहनी रूप धारण कर एक तरफ देवता और एक तरफ असुरों को बिठा दिया और कहा कि बारी-बारी सबको अमृत मिलेगा। यह सुनकर एक असुर देवताओं के बीच वेश बदल कर बैठ गया, लेकिन चंद्र और सूर्य उसे पहचान गए और भगवान विष्णु को इसकी जानकारी दी, लेकिन तब तक भगवान उसे अमृत दे चुके थे।
और अमृत उसकेगले तक पहुंचा था कि भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से असुर के धड़ को सिर से अलग कर दिया, लेकिन तब तक उसने अमृतपान कर लिया था।

हालांकि, अमृत गले से नीच नहीं उतरा था, लेकिन उसका सिर अमर हो गया। सिर राहु बना और धड़ केतु के रूप में अमर हो गया। भेद खोलने के कारण ही राहु और केतु की चंद्र और सूर्य से दुश्मनी हो गई।
मान्यता है कि कालांतर में राहु और केतु को चन्द्रमा और पृथ्वी की छाया के नीचे स्थान प्राप्त हुआ है। उस समय से राहु, सूर्य और चंद्र से द्वेष की भावना रखते हैं, जिससे ग्रहण पड़ता है।
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