दरअसल जिस अस्पताल में मरने वाला शख्स भर्ती था वहीं कोरोना वायरस ( coronavirus ) के मरीजों का इलाज चल रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक स्वच्छता विभाग के प्रमुख प्रशांत राजुरकर ने बताया, ‘नागपुर में रहने वाले इस व्यक्ति के बेटे ने शव को लेने और अंतिम संस्कार करने से इनकार कर दिया।
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इसलिए स्थानीय मुस्लिम संगठन अकोला कच्छी मेमन जमात ने ये जिम्मेदारी ली और कुछ मुस्लिम लोगों ने श्मशान में चिता को जलाया। महापालिका के स्वच्छता अधिकारी प्रशांत राजूरकर ने बताया कि दो दिन पहले एक बूढ़े आदमी की अस्पताल में मौत हो गई थी।
कागजी कार्रवाई को निपटाने के बाद प्रशासन ने मृतक के घर वालों को इस बारे में सूचना दी लेकिन घर से उनका शव लेने के लिए कोई भी शख्स नहीं आया। जिस बाप ( Father ) ने बेटे ( Son ) को जन्म दिया, उसे उसके अंतिम समय में बेटा देखने तक नहीं आया।
प्रशांत ने बताया कि मृतक के घर में उसकी पत्नि ( Wife ) और बेटा हैं। बेटा नागपुर ( Nagpur ) में रहता है जब उसे अपने पिता की मौत की खबर लगी तो वो अकोला आ गया, लेकिन उसे यहां इस बात का डर सताने लगा कि कहीं उसे कोरोना ना हो जाए। इस डर से उसने अंतिम संस्कार करना तो दूर बल्कि पिता के अंतिम दर्शन तक नहीं किए।
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जब ये खबर जावेद जकारिया को लगी तो उन्होनें उस बूढ़े शख्स का पूरे हिंदू रीति-रिवाज से दाह संस्कार किया। जावेद ने कहा कोरोना ( Corona ) ने हमारे रिश्तों की डोर को तोड़ने का काम किया है। बेटे को कोरोना ना हो जाए इसलिए उसने अपने बाप को कंधा नहीं दिया।
जावेद ज़केरिया ने ये भी बताया कि अकोला में कोरोना के चलते हुई पहली मौत के बाद हमने उन लोगों के लिए अंतिम संस्कार करने का फैसला किया जिनके परिवार ऐसा करने में सक्षम नहीं हैं। उन्होंने बताया कि हमने 60 अंतिम संस्कार किए हैं, जिनमें से 21 कोविड रोगियों के थे..इनमें से पांच हिंदू थे।