scriptSocial Distancing के बदल सकते है दायरे, 1-2 फीट नहीं कोरोना से बचने के लिए 27 फीट की दूरी है जरूरी | Scope of Social Distancing Changed 1 Feet to 27 Feet to avoid Covid-19 | Patrika News

Social Distancing के बदल सकते है दायरे, 1-2 फीट नहीं कोरोना से बचने के लिए 27 फीट की दूरी है जरूरी

locationनई दिल्लीPublished: Apr 03, 2020 10:24:31 am

Submitted by:

Ruchi Sharma

Highlights
– Social Distancing का अर्थ है आपस में मिलने-जुलने या सामाजिक आयोजनों का हिस्सा बनने से बचना-महामारी से बचने के उपाय के तौर लोगों को Social Distancing अपनाएं- Coronavirus के खतरे से बचने के लिए सोशल नहीं फिजिकल डिस्टेंसिंग (Distancing) की जरूरत है

Social Distancing के बदल सकते है दायरे, 1-2 फीट नहीं कोरोना से बचने के लिए 27 फीट की दूरी है जरूरी

Social Distancing के बदल सकते है दायरे, 1-2 फीट नहीं कोरोना से बचने के लिए 27 फीट की दूरी है जरूरी

नई दिल्ली. दुनिया भर में कोरोना वायरस (Coronavirus) के प्रकोप के बीच सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) शब्द खासा लोकप्रिय हो रहा है। कोरोना संकट के संदर्भ में Social Distancing का अर्थ है आपस में मिलने-जुलने या सामाजिक आयोजनों का हिस्सा बनने से बचना। कुछ समय पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) (WHO) द्वारा दिए गए निर्देशों के बाद, महामारी से बचने के उपाय के तौर लोगों को Social Distancing अपनाने के लिए कहा गया था। कोरोना वायरस के खतरे से बचने के लिए सोशल नहीं फिजिकल डिस्टेंसिंग (Distancing) की जरूरत है। पहले सोशल डिस्टेंसिंग (Social Distancing) का दायरा 1-2 फीट थी पर अब इसका दायरा बढ़ाने की बात सामने आई है। 1-2 नहीं बल्कि कम से कम 27 फीट की दूरी लोगों को बनानी होगी। ऐसा इसलिए क्योंकि संक्रमित व्यक्ति के ड्रॉपलेट्स (छींक और खांसी के कण) में मौजूद वायरस 27 फीट की दूरी तय कर सकता है। मतलब अगर कोई संक्रमित व्यक्ति आपसे 26 फीट की दूरी पर है और वह छींक रहा है तो यह संभव है कि उसका ड्रॉपलेट आप तक पहुंच जाए और आप संक्रमण की चपेट में आ जाएं। यह बड़ा खुलासा किया है अमेरिका के मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के वैज्ञानिक ने ।
हवा में कई मिनटों तक जिंदा रह सकते हैं वायरस

उन्होंने ड्रॉपलेट्स की गति पर अध्ययन किया है। न्यूयॉर्क पोस्ट में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक प्रोफेसर ने शोध में यह पाया कि ड्रॉपलेट्स में मौजूद सभी तरह के आकारों वाले कण 23 से 27 फीट की दूरी तय कर सकते हैं। यही नहीं, हवा में वायरस लंबे समय तक जिंदा रहता है। इस शोध को अमेरिकल मेडिकल एसोसिएशन के प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
सोशल डिस्टेंसिंग के तरीकों में बदलाव

शोध के जरिए प्रोफेसर बॉरुइबा ने चेतावनी दी है कि ड्रॉपलेट्स जमीनी सतहों को भी दूषित कर सकती हैं। इसकी छोटी सी बूंद भी लंबे समय तक हवा में मौजूद रहती है। उन्होंने कहा कि अगर सोशल डिस्टेंसिंग के तरीकों में बदलाव नहीं हुआ तो यह संक्रमण रूकने वाला नहीं है।
गाइडलाइन में बदलाव करने की जरूरत

बॉरुइबा ने एक अंग्रेजी चैनल को इंटरव्यू देते हुए बताया कि वर्तमान में विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से जारी की जा रही गाइडलाइन में संशोधन की जरूरत है। इसे तुरंत लागू करना चाहिए। सोशल डिस्टेंसिंग और इलाज में लगे डॉक्टर्स और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए जो सुरक्षा उपकरणों और जरूरतों को बताया गया है उसमें भी बदलाव करने की जरूरत है।
हो सकता है आगे बदलाव

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने बॉरुइबा के शोध का स्वागत किया। डब्ल्यूएचओ ने सोशल डिस्टेंसिंग के लिए 3 फीट की दूरी को सुरक्षा के लिहाज से पर्याप्त बताया।संस्था की ओर से कहा गया कि वह कोरोना से जुड़े सभी शोध और अध्ययनों पर लगातार नजर बनाए हुए हैं। अगर इससे जुड़ा कोई अन्य सबूत मिलता है तो वह आगे इसमें बदलाव करने पर विचार कर सकते हैं।
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